Thursday, 5 November 2020

जो मिला नही उसका कुछ गिला नही.......




वो दर्द जो गया नही वो जज़्बात जो कहा नही
नीर आंखों से झरते रहे विकल मन कुछ कहा नही।।

जो  मिला नही मुझे उसका कुछ गिला नही,
उम्मीदों की लौ बुझी नही हौसलों ने हार माना नही।।


नफ़रतों की बह रही बयार प्रदूषणो से कराहती धरती 
 फैलते ज़हर से तन मन बचा नही कोई जाना नही।।

ज़रा ठहरो -सहरे-चमन में सांप फन उठाएं बैठे हैं 
किस किस को कुचलोगे अभी तक तो तुमने समझा नही।।

 कभी झाँक कर ह्रदय स्वयम से पूछते क्यों नही
 बिखरे नागफनी को राहों से हटाना तुम्हे आता नही।।

अंधियारी रात को समेटने दीप्त रोशनी ले दीपावली आई
ह्रदय का दीपक जलाओ खुशियां ढूढना तुम्हे आता नही।।
                 ******0******

                        उर्मिला सिंह










5 comments:

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    1. शुक्रिया शिवम कुमार पाण्डेय जी

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  2. सुन्दर रचना

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    1. आभार व्यक्त करती हूं ओंकार जी।

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  3. हार्दिक धन्यवाद अनिता जी चर्चा में शामिल करने के लिए।

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