वो दर्द जो गया नही वो जज़्बात जो कहा नही
नीर आंखों से झरते रहे विकल मन कुछ कहा नही।।
जो मिला नही मुझे उसका कुछ गिला नही,
उम्मीदों की लौ बुझी नही हौसलों ने हार माना नही।।
नफ़रतों की बह रही बयार प्रदूषणो से कराहती धरती
फैलते ज़हर से तन मन बचा नही कोई जाना नही।।
ज़रा ठहरो -सहरे-चमन में सांप फन उठाएं बैठे हैं
किस किस को कुचलोगे अभी तक तो तुमने समझा नही।।
कभी झाँक कर ह्रदय स्वयम से पूछते क्यों नही
बिखरे नागफनी को राहों से हटाना तुम्हे आता नही।।
अंधियारी रात को समेटने दीप्त रोशनी ले दीपावली आई
ह्रदय का दीपक जलाओ खुशियां ढूढना तुम्हे आता नही।।
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उर्मिला सिंह
वाह। बहुत सुंदर...!
ReplyDeleteशुक्रिया शिवम कुमार पाण्डेय जी
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार व्यक्त करती हूं ओंकार जी।
Deleteहार्दिक धन्यवाद अनिता जी चर्चा में शामिल करने के लिए।
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