Friday, 12 July 2019

सावनी फुहार.....

सावनी फुहार.....
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सावन की फुहार ...
मनवा लुभाय रही..
कोइलिया कूके,मैना चहके,
कलियां चटक शरमाई रही...
सावन की फुहार...
मनवाँ उमंग जगाय रही।।

सुधियों की कस्तूरी...
घूंघट उड़ाय रही...
छनक छनक छनके,
पैजनिया सखी री...
पेड़ों के डाल पर..
कजरी के गीत..
दूर कहीं बंसी ,
विरह गीत गाय रही।।

छलके स्वर सतरंगी..
नाचे बनवा मयूरी..
झूमे सपने सतरंगी ..
इंद्रधनुष अम्बर छाय रही,
  कजरारी बरसात  में
  गुजरिया इतराये रही।।
  
गरज रहे बदरा ...
दामिन डराय रही,
महक रहे पात - पात..
बहक रहे बाग- बाग..
सांस-सांस अकुलाय रही,
देखि के  घटा कजरारी..
प्रीतम की याद..
मनवा में हूक उठाय रही..
दूर कहीं बंसी विरह गीत गाय रही..
सावन की फुहार....
मनवा उमंग जगाय रही।।

      🌷उर्मिला सिंह






                               
 







6 comments:

  1. बहुत सुंदर लोक गीत सा मधुर दी मन लुभा गया।

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  2. वाह !बहुत ही सुन्दर सृजन दी जी,
    आँचलिकता के शब्द और भी मोहक लगे |
    सादर

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  3. बेहतरीन प्रस्तुति दी 👌👌🌹

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  4. हार्दिक धन्यवाद प्रिय कुसुम

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  5. स्नेहिल धन्यवाद प्रिय अनुराधा

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  6. हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनिता

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