Saturday, 6 July 2019

नाना प्रकार के भावों से सजी एक किताब हूँ।

किताब.....
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ख्वाबों अल्फ़ाज़ों से भरी,
मसि की  धार में बहती ...
कलम की वाक्य पटुता दर्शाती,
          ...........मैं किताब हूँ।।
         
जीत हार की व्यथा  समाहित,
वीरता,त्याग,समर्पण उल्लिखित..
दुख सुख के उद्गारों से ओत प्रोत,
          ...........मैं किताब हूँ।।

प्रीत विरह की पीर घनेरी,
हास्य रुदन पन्नो पे बिखरी...
संस्कारों की कथा सुनाती,
          ..........मैं किताब हूँ।।


सागर सा अंतस्तल रखती ,
ज्ञान ज्योति,ज्ञान गंगा बहती...
वेद,पुराण,ग्रंथ सभी की अविरल धार,
          ..........मैं किताब हूँ।।

दीर्घ जीवी,जन्म- मरण से मुक्त,
कलम,पन्नो की बेमिसाल जोड़ी...
अतीत की यादों के रसकन बरसाती
          ........... मैं किताब हूँ।।

                    🌷उर्मिला सिंह

3 comments:

  1. "वेद,पुराण,ग्रंथ सभी की अविरल धार,
    मैं किताब हूँ!!"
    किताब के अनेकानेक गुड़ों का खूबसूरती से बखान करती हुई सुंदर और नायाब रचना....
    किसी किताब में क्या-क्या समाहित होता है ....इस बात का वर्णन करती हुई रचना....����

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  2. बहुत सुंदर रचना दी

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