Wednesday, 17 July 2019

चलो कुछ दिन जीने के लिये गांव की ओर चलतें हैं।

गांव की ओर.......

मन ने कहा....
चलो कुछ दिन जीने के लिये
गाँव की ओर चलते हैं
जंहा आज भी नीम के  नीचे
एक खटिया पड़ी होगी
जहाँ सूरज भोर में
झांकता होगा उन
शाखों के मध्य से
जहां किरणे पत्तियों की चलनी से
छन छन कर पड़ेगी तन मन पर
मीठी मीठी भोर
मीठी गुड़ की चाय
चलो कुछ दिन जीने के लिए
गांव की ओर चलतें हैं।

शाम होते ही
बदल जाता है माहौल
थके निढाल से बापू
जहां आकर खटिया पर से
गुड़ और एक लोटे पानी की
चाहत रखते थे
जहाँ सूरज के लुप्त होते ही
चाँद झांकने लगता है
आज भी सभी कुछ वैसा ही होगा
कुछ बदला होगा तो सड़कें
पनघट की जगह
हैंडपुम्प ने ले लिया होगा
पगडंडिया देती नही होंगी दिखाई
वही राम राम भैया कहना
सभी कुछ वैसा ही होगा
चलो कुछ दिन जीने के लिये
गांव की ओर चलते हैं।

हर रिस्ते जी भर के जीतें हैं
वहां रिस्तो में जीवन होता है
वहां मिट्टी में कर्म की खुशबू
आशा विश्वास आस्था का---
अद्भुत संयोग होता है
जहां प्राचीन संस्कृति की
आज भी झलक मिलती है
चलो कुछ दिन जीने के लिये
गांव की ओर चलते हैं।।

*****0*****
          🌷उर्मिला सिंह



2 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर सृजन दी जी
    गाँव की यादें मन ही मन में न जाने कितनी दौड़ लगती है उन्ही यादों में सिमटी बहुत ही सुन्दर रचना
    सादर

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  2. हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनिता

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