Saturday, 20 July 2019

बारिष .....बूंदे.....और भींगता अहसास.....

बारिष..... बूंदे.....
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बूँदें बरसती हुई छूने को दौडती
कानों में .....कुछ कहती भिगोती
तुम्हारे यादों को अहसास में डुबो के
ख्यालों को हरी चुनर ओढाती

बूंदे.......

आह ....जब छुआ बूंदों ने,
एक अहसास हुआ तन को,
शायद तुम्हारे पास होने का अहसास,
लेकिन जब देखा तो तुम नही थे पास
बूंदे.....

गूंजित हुई कडकडाती बिजली,
चमकदार प्रकाश पंहुचा हर ओर
अचानक व्याप्त शांति में ,हुआ कुछ शोर
कौंधती किरणों ने ,आखों में सपना जगाया
आँखें बंद होते ही फिर ख्याल तेरा आया

बूंदे ....

ठंडी हवा का एक झोका सरसराया
रोम रोम जागृत हुवा बारिष ने मन को सहलाया
इस ठण्ड में मन ने कहीं उसकी छूअन का
गरम अहसास दिलाया ,आंखे खुलीं
पर अफ़सोस...यह सब कुछ नहीं..
बस थी अगर कुछ तो थी एक माया....केवल माया...

                  🌷उर्मिला सिंह
                                

7 comments:

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  2. बहुत ही सुन्दर सृजन प्रिय दी जी
    सादर

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  3. बारिश बूंदे और भोगता एहसास सुन्दर सृजन

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  4. बहुत सुंदर हृदय स्पर्सी विरह शृंगार दी बहुत प्यारी रचना।

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  5. हार्दिक धन्यवाद आपको

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  6. हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनिता

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  7. हार्दिक धन्यवाद मीना जी

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