जहां फुटपाथ बिछोना,आसमां छत है
वे जिन्दगी की क्या बात करे।
उम्र तमाम हुई ,तन में साँस अभी बाकी है
आंधी पानी ठंढ सहे ,खेल मौत का बाकी है
सूरज का भी गुस्सा झेले, अपनो की उपेक्षा.....
हर मौसम ने उजाड़ा, औरों की ठोकर बाकी है।
जहां फुटपाथ बिछौना आसमां छत है
वे जिन्दगी की क्या बात करे।
काश हमारे भी आँगन में,सूर्य मुखी खिलता
तन की थकन मिटाने को,कोई बिछौना होता
पांव के नीचे धरती सर पर छत अम्बर का.....
किस्मत में 'तूँ' सूखी रोटी नमक प्याज ही लिखता।
जहां पेट भूखे,सोने का आदी है
वे जिन्दगी की क्या बात करे।
यह दुनिया जिन्दी लाशों से बनी दुनियां है
जहाँ मौत का कुंआ,होती बदबूदार गलियां हैं
जहाँ भूख बिलबिलाती ,मौत ही एक दवा है
यहांअग्नि जरूरी नही,क्षुधा,अग्नि,से जलती चिता है।
जहां सिकुड़ी हुई जिन्दगी सासे गिनती है
वे सपनो की क्या बात करें।।
उर्मिला सिंह
"जहां फुटपाथ बिछोना,आसमां छत है
ReplyDeleteवह जिन्दगी की क्या बात करे।"
-दिल को छू लेने वाली मार्मिक अभिव्यक्ति । आज के हालात पर इस हृदयस्पर्शी रचना के लिए हार्दिक आभार।
हार्दिक धन्यवाद स्वराज्य करुण जी।
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 20 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक धन्यवाद रविन्द्र सिंह यादव जी।
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteशुक्रिया सुशील कुमार जोशी जी।
ReplyDeleteआदरणीया मैम ,
ReplyDeleteहमारे श्रमिकों की वेदना को दर्शाती हुई बहुत ही सुंदर रचना।
सच है , जहां फुटपाथ बिछौना है, वह ज़िंदगी की क्या बात करें।
दुःख की बात यह है की हम बहुत दिनों से अपने श्रमिकों की उपेक्षा करते रहे , सरकार के द्वारा भी इन के लिए कोई योजना नहीं बनी।
आशा है की आपकी यह रचना सभी को जागरूक करे।
सुंदर रचना के लिए ह्रदय से आभार।
आपसे अनुरोध है की कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आएं। आपके आशीष व प्रोत्साहन के लिए अनुग्रहित रहूंगी।
प्रिय बहन हमारी रचना आपको पसन्द आई इसके लिए आभारी हूँ।अवश्य आपके ब्लॉग पर आऊंगी।
Deleteबेसहारा जिन्दगी की मार्मिक प्रस्तुति।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी।
Delete