जिन्दगी तूँ हारने की न बात कर
अभी हौसले में दम है हौसले की बात कर।
चक्रवात उठे या तूफान डर के जीना क्या
हमें संघर्षों की आदत है संघर्षों की बात कर।
तिमिर आक्छादित हो भले ही गगन में
अवसान इसका भी होगा इंतज़ार की बात कर।
नाउम्मिदियों के सैलाब में तैरते पत्ते को देखतें हैं
आज में जीना आता है खुशनुमा आज की बात कर।
काफ़िला दर्द का चेहरे पे आके गुज़र जाता है
जब्त करते है मुस्कुराहटों से,खिलखिलाने की बात कर।
अवसादों और तन्हाइयों से उकताने की न बात कर
जीवन में होरहेे प्रहार को हिम्मत से झेलने की बात कर।।
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उर्मिला सिंह
सुन्दर और सारगर्भित।
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की बहुत-बहुत बधाई हो आपको।
डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी!आपको भी शिक्षक दिवस की ढेरों बधाई।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (०६-०९-२०२०) को 'उजाले पीटने के दिन थोड़ा अंधेरा भी लिखना जरूरी था' (चर्चा अंक-३८१६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
हार्दिक धन्यवाद अनिट्स जी हमारी रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 07 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteकैसा भी समय हो उसे एक न एक दिन बीत जाना ही है
हार्दिक धन्यवाद कविता जी।
Deleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी हमारी रचना को साझा करने के लिए।
ReplyDeleteदिल निचोड़ के रख दिया इस रचना ने कि...काफ़िला दर्द का चेहरे पे आके गुज़र जाता है
ReplyDeleteजब्त करते है मुस्कुराहटों से,खिलखिलाने की बात कर।...वाह
बहुत बहुत आभार आपका अलकनन्दा सिंह जी
Deleteसार्थक सकारत्मक सृजन
ReplyDeleteहरफिक धन्यवाद हिन्दीगुरु जी।
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