मुफ्त में अनुभव जिन्दगी ने दिया नही
पत्थरों की तरह घिस घिस के सिखाया है !!
चेहरी की झुर्रियाँ कहती जिसे दुनिया
जिम्मेदारियों की तपन से तप के पाया है !!
हौसला हार माना नही ,आज भी जवाँ है
तूफानों को हरा हौसलों ने जगह पाया है
गेसुओं में चमकती चाँदनी उम्र-ए खिताब नही
अनगिनित ख़्वाबों को जला कर के चमकाया है!!
🌷उर्मिला सिंह
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया अनिता सुधीर जी
Deleteहार्दिक धन्यवाद डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन दी उम्र का ठहराव अनुभव का विस्तार।
ReplyDeleteसुंदर।
स्नेहिल धन्यवाद प्रिय कुसुम।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 09 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी,हमारी रचना मो शामिल करने के लिए।
Deleteबहुत सुंदर रचना दी।
ReplyDeleteस्नेहिल धन्यवाद अनुराधा जी
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सुशील कुमार जोशी जी।
Deleteहृदय स्पर्शी सृजन दी ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर।
प्रिय अनिता सैनी जी हार्दिक धन्यवाद आपका।
Deleteआदरणीया उर्मिला सिंह जी, नमस्ते! बहुत अच्छे शेर हैं। खासकर यह शेर:
ReplyDeleteगेसुओं में चमकती चाँदनी उम्र-ए खिताब नही
अनगिनित ख़्वाबों को जला कर के चमकाया है!! साधुवाद!
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सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ
हार्दिक धन्यवाद श्रीमान ब्रजेंद्रनाथ जी।
Deleteअनगिनत ख्वाब टूटते हैं तो एक पूरा होता है ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब शेर ...
बहुत बहुत शुक्रिया दिगम्बर नासवा जी।
Deleteबहुत सुंदर सृजन
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