भोजपूरी में लिखी रचना बेटियों पर है। बेटियां जब अनगिनित ख्वाब सजाए ससुराल जाती हैं पर वहा
हर ख्वाब धूमिल होते नज़र आतें हैं उस समय उनकी मन की व्यथा का वर्णन इस रचना के माध्यम से आप सभी के समक्ष रख रही हूं,.....
मनवाँ के बतिया सुने प्यारी मैना
मन के मुंडेरवा पे बैठी प्यारी मैंना
मनवाँ की बतिया सुने प्यारी मैना
दरद जिया के कोई नही जाने
मितवा बनी है मेरी प्यारी मैना।
अंखिया से झर- झर गिरे मोर अंसुवा
निरखि निरखि पोछे मोरि प्यारी मैना
ससुरा के पिजरा के कैदी मोर सपनवा
देहरी के दिया तले जरे मोर जियरा
मनवाँ के बतिया सुने प्यारी मैना।।
मइया के दुलरवा के तरसे मोरा हियरा
बिनु पखिया के घूमें एहि रे अंगनवा
आगे पीछे दिखत नही कोई हमेअपना
मइया काहे भेज देहु अपने से दुरवा
तनवा सहत सहत हार गइले मनवाँ
कब तक जडू मईया मुँहवा पर तलवा
हियरा जरे मईया दिन अरु रतिया......
खुनवां के असुंवा पी - जिये तोरी बिटीया
मनवाँ के बतिया सुने प्यारी मैना
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सुन्दर गीत।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी।
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