सुप्त हृद संवेदना के तार तरंगित करते हैं
पथ भूले को इंसानियत की राह दिखा कर..
लेखनी की टंकार से मानवता जगाते हैं....!
छल कपट की ओढ चुनरिया
मान अभिमान का गहना
आँखों पर दौलत का चश्मा
पांव तले कराहती मानवता!
जीर्ण क्षीण संस्कारों का पूर्णोद्धार करते हैं
आओ देश में सुख सौरभ आनन्द बिछा कर..
लेखनी की टंकार से मानवता जगाते हैं...!
स्वार्थी पुतले आदम खोर हुए
तरह तरह की खाल बदलते
धर्म-कर्म से परहेज है इनको
मौका देख गिरगिट बन जाते!
तप्त लहू तेरा ,दुश्मन पर वार करते हैं
आओ कुटिल चालें नाकाम कर ...
लेखनी की टंकार से मानवता जगातें हैं....!
लोमड़ी सी चालाकी ,विषदन्त उगाये
लक्ष्यागृह के निर्माता बैठे ताक लगाये
नित नये षणयंत्रों का बुनते ताना बाना
भ्रम जाल फैला,सिहासन कीै करते आशा!
इन विषैले सर्पों का फन कुचलतें हैं
आओ नई राह नई मंजिल पर चल कर ..
लेखनी की टंकार से मानवता जगातें हैं ....!
मानवता आज खतरे में पड़ी है
प्रकृति अपने तेवर दिखा रही है
शोक संतप्त माँ भारती भी...
अपने नॉनिहालों को निहार रही है!
तार तार होती मानवता हर पल
कराहती इंसानियत का दर्द बता कर ...
लेखनी की टंकार से मानवता जगाते हैं...!
कदम बढ़ाओ आगे आओ तरुणाई
मां भारती की लाली क्षीण न होने पाए
भारत के वीरों तुम याद करो कुर्बानी
तेरे कंधों पर टिकी माँ भारती की आशाएं!
तेरे शौर्य को आशान्वित नयन निहारते
लेखनी की टंकार से मानवता जगाते हैं...!!
उर्मिला सिंह
मानवता रक्षण हेतु हृदयस्पर्शी सृजन . बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मीना जी।
ReplyDeleteसुन्दर और भावप्रवण रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 29 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रविन्द्र जी हमारी रचना को मंच
Deleteपर साझा करने के लिये।
सुंदर लेखन
ReplyDeleteआभार आपका विभा रानी जी।
Deleteहार्दिक धन्यवाद विभा रानी जी।
Deleteसुंदर सार्थक रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मीना शर्मा जी आपका।
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