Monday, 12 October 2020

गज़ल

ज़मीर की ज़मीन बंजर होगई आजकल
उसूलों की तामील दीजिये तो बात बने।।

रिश्तों की क्यारी में रेत ही बाकी बची रोने को
 इसमें स्नेह के फूल खिले तो बात बने।।

रूप बदला चाँद ने भी अनेकों  गगन में
पर चाँद की शीतलता याद रहे तो बात बने।।

रूबरू आईने के होते ही नकाब उठ जाती
ये सच्चाई गर समझ आजाये तो बात बने।।

बरस रही है तीरगी चहुंओर आजकल
उजालों की कोई बात करे तो बात बने।।


अपनी ढपली अपना राग अलापते सभी हैं
 देश के विकास में सहयोग की बात करे तो बात बने।।


                   उर्मिला सिंह




10 comments:

  1. रिश्तों की क्यारी में रेत ही बाकी बची रोने को
    इसमें स्नेह के फूल खिले तो बात बने।।
    वाह!!!
    क्या बात...
    बहुत ही लाजवाब।

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    1. अंतस्तल से धन्यवाद सुधा जी।

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  2. वाह !बेहतरीन आदरणीय दी।

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    1. स्नेहिल धन्यवाद प्रिय अनिता जी।

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    1. हार्दिक आभार मान्यवर ।

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    1. हार्दिक आभार आपका उषा किरण जी

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