तूफानों में जो जल सके वो चिराग लाओ
हरसू अंधेरा ही अंधेरा है उजाले लाओ !!
मजहब के छालों से जख़्मी तन मन होरहा
हो सके तो मोहब्बत के भरे प्याले लाओ!!
शब्दो के बाण चल रहे दिल के टुकड़े हो रहे
प्यार से ,मौन हुवे होठों की आवाजें लाओ !!
भरम पाले बैठें हैं ख़ुशबुओं को कैद करने का
दिले -गुलशन में हुनर खुशबू फैलाने के लाओ!!
इश्क मोहब्बत की चर्चा लिखने में मशगूल रहे
भूख से तरसते बचपन को रोटी के निवाले लाओ।
महलों के साज सज्जा के दीवाने तो सभी होते
पानी से भींगती जिन्दगी के लिए ठिकाने लाओ।।
********0*******
उर्मिला सिंह
सारगर्भित ग़ज़ल।
ReplyDeleteमोहब्बत के भरे प्याले लाओ!!
ReplyDeleteवाह!दी बहुत ही सुंदर।
आभार तथा धन्यवाद आपका डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी।(मयंक)जी।
Deleteप्रिय कुसुम स्नेहिल धन्यवाद आपका।
Deleteमहलों के साज सज्जा के दीवाने तो सभी होते
ReplyDeleteपानी से भींगती जिन्दगी के लिए ठिकाने लाओ।।
क्या बात!
बहुत सुंदर
हार्दिक धन्यवाद साधु चन्द्र जी।
Deleteप्रातः नमन के साथ आपका आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए।
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल....
ReplyDeleteआभार विकास नैनवाल'अंजान'जी।
Deleteबेहतरीन ग़ज़ल दी
ReplyDeleteस्नेहिल धन्यवाद प्रिय अनुराधा चौहान जी।
Deleteआभार आपका डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी हमारी रचना को साझा करने के लिए।
ReplyDeleteआदरणीया उर्मिला सिंह जी, नमस्ते👏!बहुत सुंदर गजल! ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगीं:
ReplyDeleteशब्दो के बाण चल रहे दिल के टुकड़े हो रहे
प्यार से ,मौन हुवे होठों की आवाजें लाओ !!
--ब्रजेन्द्रनाथ