द्रोपदी का चीर हरण नित्य होता रहा
दर्द की कराह रौंद जग आगे बढ़ता रहा
राजनीति सियासत का पासा फेकती रही.....
उसूल मरता,न्यायालय जमानत देता रहा ।।
कलमकार का दर्द पन्नों पर बिखरता रहा
चरित्र का खुले बाज़ार में सट्टा चलता रहा
कलयुगी रावणों की जमात में राम खोगये कहीं....
आज का कायर इंसान गूंगा बहरा हो रहा ।।
नारी पुनः शक्ति अपनी तुम्हे पहचानना होगा
आखिरी सांस तक अधर्मियों के संग लड़ना होगा
तुम्हे इन दुर्गंधित कीड़ों को मारकर ही मरना होगा
यही संकल्प नवरात्रि में हर नारी को लेना होगा।।
चुनौती बन के आओ इन दम्भीयों के सामने
यह लड़ाई होगी तुम्हारी इन आतताइयों से
शक्ति पुंज हो शक्ति का आवाहन करो..
प्राणों की भीख मांगेंगे ये गिद्ध तुम्हारे सामने।।
उर्मिला सिंह
हार्दिक धन्यवाद मीना जी मेरी रचना को साझा करने के लिए।
ReplyDeleteउत्साह का संचार करती सुंदर रचना।
ReplyDeleteजी आभार आपका
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