Monday, 19 October 2020

जो कभी नही भरते.....

माने या न माने.....चार स्थान ऐसे हैं जो कभी नही भरते 
समुद्र, मन, तृष्णा, और श्मशान 

समुद्र :-

समुन्दर तेरी गहराई तेरे ओर क्षोर का पता नही
कभी खाली नही दिखता,नजाने कितनी नदियों से मिलता
क्या क्या छुपा रक्खाअंतस्तल में कुछ पता नही मिलता
जो जितने गहरे डुबकी लगाते उतने ही रत्न जुटाते
तभी तो दुनिया में तुम रत्नाकर कहलाते।।

मन:-
सागर के छोटे भाई लगते तुम
भाओं के अम्बार छुपा रक्खे तुम
कुछ संकुचित कुछ विस्तीर्ण होते
तेरी गति से तेज न गति होती किसीकी
अभिलाषाओं से खाली मन होता नही कभी।

तृष्णा:-

मानव काया तृष्णा के चेरी 
प्यास कभी न बुझ पाई इसकी
जाने कितना गहरा पेट है इसका
भरने का यह नाम न लेती.......
तभी तो कहते हैं"तृष्णा तूँ न गई मन से"


श्मशान:-

जीवन का सत्य यहीं से दिखता
अग्नि की लपटों का घिरा रहता
कभी न बुझती आग तुम्हारी.....
किसने तुझको है ये श्राप दिया।।

      उर्मिला सिंह


7 comments:

  1. हार्दिक धन्यवाद डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी हमारी रचना को मंच पर साझा करने के लिए।

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  2. बहुत बहुत आभार आपका दिग्विजय अग्रवाल जी,हमारी रचना को साझा करने के लिए।

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. वाह!!
    कुछ संकुचित कुछ विस्तीर्ण होते
    तेरी गति से तेज न गति होती किसीकी
    अभिलाषाओं से खाली मन होता नही कभी।

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  5. आदरणीया उर्मिला सिंह जी, नमस्ते 🙏! आपने जीवन के सच को उजागर करते प्रतिमानों को लेकर उनपर लेखिनी चलायी है। साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ

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    1. हार्दिक धन्यवाद मान्यवर।

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