धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही....
हैवानियत के आगोश में इंसानियत दम तोड़ रही
आजकल धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही
फैला है जाल ऐसा आत्मा कलुषित हो रही
सौहार्द हो रहा विलुप्त क्रूरता जडे जमा रही
धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही....
क्रोध,ईर्ष्या,द्वेष,व्यभिचार आक्रामक हो रहे
क्षमा शील ह्रदय ,आज सूखी नदिया हो गये
बिक रहा ईमान चन्द सिक्को में यहाँ
प्रेम विहीन जीवन आज श्रीहीन बनते जा रहे
धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही....
रोक लों अभी भी क्रूरता के मनहूस सायें को
मन को छलनी कर ,लील जाएगी मानवता को
शैने-शैने मानव आदी हो गा इस कुकृत्य का
खून की नदियाँ बहेगीं होगा नृत्य व्यभिचार का
धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही.....
दया धर्म करुणा का नामो निशान मिट जाएगा
बहती करूणा की नदी आंखों में सूख जाएगी
मछेरे जाल फैलाएं गे मछलियाँ तड़ फड़ाएं गीं
होगा हथियारों का बोल बाला,सहमी हर कली होगी
इस विकराल दानव के मुंख में इंसानियत मरती रहेगी
धीरे धीरे एक आहट सुनाई दे रही......!!
उर्मिला सिंह
आज के हालात की सटीक और बेबाक व्याख्या करती हुई अभिनव रचना...
ReplyDeleteसुंदर....
सटीक व उम्दा।
ReplyDeleteलिखते रहें।
हार्दिक धन्य वाद
Deleteबहुत सुंदर और सार्थक सृजन दी👌👌👌
ReplyDeleteस्नेहिल धन्य वाद प्रिय अभिलाषा!
Deleteहार्दिक धन्य वाद मान्यवर रचना को "पांच लिंको
ReplyDeleteका आनन्द" पर साझा करने के लिए!
ये आहाट कई बार इतन तेज़ होती है की अच्छे की आहट भी सुनाई नहीं देती ...
ReplyDeleteफिर भी आशा की डोर जरूरी है आएगी ... अच्छे की आहट भी ...
भावपूर्ण रचना ...
हार्दिक धन्य वाद. मान्यवर
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार सुजाता जी
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