बिटिया रानी
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यादों के झुरमुट से.....
एक तस्वीर उभर कर आती है
चंचल नटखट सी......
घर आंगन में दौड़ लगाती......
बाग बगीचों में तितली को पकड़ती
भौरों के गुनगुन से, डरती सहमती
चिड़ियों सी चहकती फूलों सी हँसती!
लुका-छिपी के खेलों में.......
भाई से लड़ती झगड़ती.....
बरसात के मौसम में
कागज की नाव बनाती
पानी में तैरते देख उसे.....
ताली बजा हँसती और हँसाती!
आज वही नन्ही गुड़िया
रिस्तों के प्यारे बंधन में
पत्नि माँ बहू बन,
रिस्तों पर अपना प्यार लुटाती
जिसे हम सभी प्यार से कहते
मेरी बिटिया रानी!!
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उर्मिला सिंह
बहुत खूबसूरत रचना दी👌👌💐
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्य वाद प्रिय अनुराधा
Deleteबहुत सुंदर सृजन दी कितने कोमल भाव दिये हैं आपने बेटियों जैसे ही नाजुक मनहर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्य वाद प्रिय श्वेता मेरी रचना को साझा करने के लिये!
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