न पूछ ऐ जिन्दगी उम्र की ढलान पर क्या बचा पास है
मुस्कानों के संग झरते आंसुओं का अहसासबचा पास है!
जिन्दगी की ज़ंग में ज़ख्मों का ज़खीरा साथ चलता रहा
पतझर में मधुमास की उम्मीदों का कारवां बचा पास है!
हजारों तूफ़ान आए हार मानी नहीं जिन्दगी ने......,
विश्वासों उम्मीदों की अटल डोर का सहारा बचा पास है!
प्रेम की दौलत का खजाना लुटाया सभी पर जमाने में
अभी अधरों की मुस्कानों का अवशेष बचा पास है!
,अंधेरी रातों में जुगनू की रोशनी भी होतीं मोहाल हैं
आज भी चांदनी रात की ख्वाहिशों का ढेर बचा पास है!
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उर्मिला सिंह
रचना को शामिल करने के लिये आभार
ReplyDelete".......ख़्वाहिशो का ढेर बचा पास है"
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना...
ज़िन्दगी की सच्चाइयों को बड़ी नज़दीकी से बयाँ करती हुई ....
रोज़मर्रा की एक आम व्यक्ति की मनः स्थिति को बखूबी दर्शीती हुई ...
मङ्गलमय सुप्रभातम....💐💐
हार्दिक धन्य वाद
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी 👌👌👌👌
ReplyDeleteआभार प्रिय अनुराधा
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