जीवन का दर्पण देख रहा मेरा मन
उड़ रहा उड़ रहा पतंग सा मेरा मन!
कभी इधर कभी उधर
न जाने मंजिल किधर
कभी उठूं कभी गिरूं
हौसले पे अपने ख़ुद!!
.. मुस्कराता मेरा मन मेरा मन
उड़ रहा उड़ रहा पतंग सा मेरा मन!
रंग बिरंगे स्वप्न हैं
इन्द्रधनुष मन में है
. . हर नजारें कह रहे
उमंग से भरे नयन
बहक रहा मेरा मन मेरा मन
उड़ रहा उड़ रहा पतंग सा मेरा मन!!
उम्मीदों की डोर से
जीवन का राग है
कट गयी,तो जमीन
नही तो....
खिल खिलाता आसमान!!
जीवन की डोर में उलझता रहा मेरा मन
उड़ रहा उड़ रहा पतंग सा मेरा मन!!
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उर्मिला सिंह
🌷उर्मिला सिंह
बहुत सुंदर प्रस्तुति दी पतंग और मन की सुंदर तुलना ।
ReplyDeleteसार्थक सृजन।
धन्य वाद प्रिय कुसुम
Deleteवाह बहुत खूबसूरत रचना दीदी
ReplyDeleteधन्य वाद प्रिय अभिलाषा
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