Tuesday, 21 January 2020

मौन.....

गिले शिकवे मन के  कुछ  तो कहो! 
मौन की  भाषा  कौन समझता यहाँ!!
फ़लक से ज़मी तक मौन होती यहाँ!
उदास आँखों मे नमी ,कुछ तो कहो!!

सरकती ज़िन्दगी  है  धीरे  धीरे यहाँ!
अपनी सासों में कैद है हर कोई यहाँ!!
ख्वाब  अजनवी  लगते है जब !
अधरों पर क्यो ताले लगे कुछ तो कहो!!

पत्थर की नगरी पत्थर हैं लोग यहाँ!
है इन्सानियत  मरती कदम कदम यहाँ!!
 वेदना सह कर भी होता है क्या!
मिटाते आस्तित्व  जिसके  लिए तुमयहाँ !
समर्पण समझते कहाँ लोग, कुछ तो कहो!!

जिन्दगी बीत जाती है  जिम्मेदारियों  तले
उम्र याद आती,दिखती चेहरे की झुर्रियाँ!
ख्वाबों की  सिलवटे  कहती  रहीं तन्हाईयाँ
कहते  कहते   भी  कुछ  कह  न  पाए  !
खामोशियों को बनाली जिन्दगी ,कुछ तो कहो!

सुकूँ की तलाश में स्नेह पौध सींचते रहे....
जिन्दगी फिसलती रही रेत की तरह हाथ से
हाथ आया न कुछ मगर अश्क पी, जीते रहे
सच जिन्दगी का यही है कौन किसका यहाँ
अधरों  पर  क्यों  ताले  लगे  कुछ तो कहो!!

                                #उर्मील
















10 comments:

  1. जिन्दगी बीत जाती है जिम्मेदारियों तले
    उम्र याद आती,दिखती चेहरे की झुर्रियाँ!
    ख्वाबों की सिलवटे कहती रहीं तन्हाईयाँ
    कहते कहते भी कुछ कह न पाए !
    खामोशियों को बनाली जिन्दगी ,कुछ तो कहो!
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दीदी 👌👌👌👌

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    1. स्नेहिल धन्य वाद प्रिय बहन

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  2. ... बहुत ही सुंदर लिखा... शब्दों की बाजीगरी खूब आती है आपको बधाई

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    1. बहुत बहुत धन्य वाद आपको

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  3. सुकून की तलाश में स्नेहपौध सींचते रहे
    जिन्दगी फिसलती रही रेत की तरह हाथ से...
    सटीक प्रस्तुति

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  4. " ज़िन्दगी बीत जाती है जिम्मेदारियों तले
    उम्र याद आती,दिखती चेहरे की झुर्रियां."
    लाजवाब - लाजवाब अभिव्यक्ति इस खूबसूरत रचना के माध्यम से...
    बहुत अच्छे.....

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  5. बहुत सुंदर सृजन दी जिंदगी का फलसफा बताती सुंदर रचना।

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