Wednesday, 10 June 2020

शब्द जब धार बनाते हैं...... तब कविता कविता कहलाती है।

प्रातः नमन......

मन में दहकते जब शोले हों   
भाओं से टकराते जब मेले हों                                
चिनगारी बन शब्दों से निकल,
 पन्नो पे उतरने  लग जाती है ;
 तब कविता- कविता कहलाती है !

जब मन की पीड़ा  चुभने लगती है ,
जब  तन्हाई  ही  तन्हाई  होती   है ,
जब शब्दो  का  सम्बल  ले  कर के ,
मन  की  गांठे  खुलने  लगती   हैं ;
तब कविता - कविता कहलाती है !

जब भूखा - नंगा बचपन भीख मांगता है ,
चौराहो पर नारी अस्मत लूटी जाती है,
 कानून महज मजाक  बन  रहजाता  है ,
 आँखों से टपकते विद्रोह जब शब्द बनाते है ;
 तब कविता - कविता ....... कहलाती  है  !

राजनीती में जब धर्म-जाति को बाटा जाता है
सिंहासन के आगे जब देश गौड़ हो जाता  है ,
युवा जहाँ ख्वाबों की लाश लिये फिरते हैं ,
उनकी आहों से जब शब्द  ......धार बनातेहै,
तब  कविता - कविता ...... कहलाती  है ।
                     *********
                   
                       🌷उर्मिला सिंह

10 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति...💐💐

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. हार्दिक धन्यावद यशोदा जी मेरी रचना को मंच पर शामिल करने के लिये,नमस्कार।

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुन्दर रचा का सृजन हुआ है । हार्दिक बधाई ।

    ReplyDelete
  5. धन्यवाद पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी।

    ReplyDelete
  6. वाह!लाजवाब सृजन दी 👌
    जब मन की पीड़ा चुभने लगती है ,
    जब तन्हाई ही तन्हाई होती है ,
    जब शब्दो का सम्बल ले कर के ,
    मन की गांठे खुलने लगती हैं ;
    तब कविता - कविता कहलाती है !..वाह!

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्नेहिल धन्यवाद अनिता सैनीजी।

      Delete
  7. धर्म-जाति ही जब यहाँ इंसानों को बाँटती है
    पत्थर विशेष और मानवता गौण हो जाती है।
    लुटती लाज को बचाने जब कोई अवतार ही,
    कभी नहीं आता है और लाज लुट जाती है।
    तब मन से निकली आह कविता कहलाती है ...
    (क्षमायाचना सहित ..)

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका ह्र्दयतल से बहुत बहुत धन्यवाद मान्यवर क्षमा शब्द का प्रयोग कृपया न करें हमें दुख होगा।

      Delete