प्रातः नमन......
मन में दहकते जब शोले हों
भाओं से टकराते जब मेले हों
चिनगारी बन शब्दों से निकल,
पन्नो पे उतरने लग जाती है ;
तब कविता- कविता कहलाती है !
जब मन की पीड़ा चुभने लगती है ,
जब तन्हाई ही तन्हाई होती है ,
जब शब्दो का सम्बल ले कर के ,
मन की गांठे खुलने लगती हैं ;
तब कविता - कविता कहलाती है !
जब भूखा - नंगा बचपन भीख मांगता है ,
चौराहो पर नारी अस्मत लूटी जाती है,
कानून महज मजाक बन रहजाता है ,
आँखों से टपकते विद्रोह जब शब्द बनाते है ;
तब कविता - कविता ....... कहलाती है !
राजनीती में जब धर्म-जाति को बाटा जाता है
सिंहासन के आगे जब देश गौड़ हो जाता है ,
युवा जहाँ ख्वाबों की लाश लिये फिरते हैं ,
उनकी आहों से जब शब्द ......धार बनातेहै,
तब कविता - कविता ...... कहलाती है ।
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🌷उर्मिला सिंह
Wonderful...
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति...💐💐
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यावद यशोदा जी मेरी रचना को मंच पर शामिल करने के लिये,नमस्कार।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचा का सृजन हुआ है । हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteधन्यवाद पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी।
ReplyDeleteवाह!लाजवाब सृजन दी 👌
ReplyDeleteजब मन की पीड़ा चुभने लगती है ,
जब तन्हाई ही तन्हाई होती है ,
जब शब्दो का सम्बल ले कर के ,
मन की गांठे खुलने लगती हैं ;
तब कविता - कविता कहलाती है !..वाह!
स्नेहिल धन्यवाद अनिता सैनीजी।
Deleteधर्म-जाति ही जब यहाँ इंसानों को बाँटती है
ReplyDeleteपत्थर विशेष और मानवता गौण हो जाती है।
लुटती लाज को बचाने जब कोई अवतार ही,
कभी नहीं आता है और लाज लुट जाती है।
तब मन से निकली आह कविता कहलाती है ...
(क्षमायाचना सहित ..)
आपका ह्र्दयतल से बहुत बहुत धन्यवाद मान्यवर क्षमा शब्द का प्रयोग कृपया न करें हमें दुख होगा।
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