Friday, 5 June 2020

इंसानियत......

पशुता के झंझावत में दुर्बल होती गाँधी, बुद्ध,की बोली है
कदम-कदम पर लगती यहां अब इंसानियत की बोली है।

संवेदनाओं का सागर सूख गया दया धर्म दफ़्न हुवा
गली,चौराहों पर दिखते अमानवीय इंसानो की टोली है।

जीवन संवेदन हीन हुवा मानवता का नमो निशान मिटा
तृष्णा कैदी मानव,जला रहा प्रेम दया करुणा की होली है

इंसानियत हैवानियत में बदली, क्रूरता का हो रहा तांडव
भावोंं में दुर्भावना विकसित,ये कैसी विषैली हवा चलीहै।

खो रहा जीवन संगीत अनुभव,संकल्प ,दिशा हीन हुए
बर्बरता के ठहाके,सिसक रही इन्सानियत की डोली है।
                 ,*****0*****0*****
                                     उर्मिला सिंह







7 comments:

  1. इंसानियत का दिन प्रतिदिन होने वाले ह्रास का सुन्दर चित्रण ...
    सुन्दर और सामयिक रचना....
    💐💐

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  2. वाह! लाजवाब सृजन आदरणीय दी.
    सादर प्रणाम

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  3. आपका हार्दिक धन्यवाद रविन्द्र सिंह यादव जी,मेरी कविता को मंच पर चर्चा के लिए चयन किया इसके लिए पुनः धन्यवाद। शुभ संध्या

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  4. सुन्दर चित्रण

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    1. हार्दिक धन्यवाद मान्यवर

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  5. जीवन संवेदन हीन हुवा मानवता का नमो निशान मिटा
    तृष्णा कैदी मानव,जला रहा प्रेम दया करुणा की होली है.... बहुत सुंदर और सटीक रचना दी

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    1. स्नेहिल धन्यवाद प्रिय अनुराधा जी

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