Saturday 20 June 2020

अनवरत प्रतीक्षा.....

प्रतीक्षा के सन्नाटे में.....
आगमन की गुंजित आहटें
सुनने को तरसते कर्ण
चौकाती पल पल.....
उम्मीदों की किरण
पर तुम न आये.....

पिता की वात्सल्य की पुकारें
मां की ममता की डोर .....
समय के साथ कमजोर पड़ती गई
प्रतीक्षा की सारे आशाएं
दीवारों से टकरा कर जख्मी हो गए
पर तुम न आये.....

आज खण्डहर में परिवर्तित घर.....से
रात के सन्नाटे में ......
बेटे के पैरों की आहट सुनने को.....
 दर्द से कराहती एक आवाज .....
 गूंजती है.......
 बिलखती मां के आँसूं 
 आखिरी सांस तक पूछती रही.....
 पर तुम न आये.......
  *****0*****
              उर्मिला सिंह
 




8 comments:

  1. प्रतीक्षा पर अच्छी रचना...
    बहुत सुंदर...
    शुभ सन्ध्या...
    💐💐

    ReplyDelete
  2. नमस्ते यशोदा जी,हमारी रचना को मंच पर शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

    ReplyDelete
  3. पिता की वात्सल्य की पुकारें
    मां की ममता की डोर .....
    समय के साथ कमजोर पड़ती गई
    प्रतीक्षा की सारे आशाएं
    दीवारों से टकरा कर जख्मी हो गए
    पर तुम न आये.....
    वाह!!!
    प्रतीक्षा पर बहुत ही शानदार सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी।

      Delete
  4. बहुत ही सुंदर हृदय हृदय स्पर्शी सृजन आदरणीय दीदी .
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्नेहिल धन्यवाद प्रिय अनिता जी

      Delete
  5. मन को छूती हुई... कसक लिए गुज़र जाती है रचना ...
    बहुत ह्रदय स्पर्शी भाव ...

    ReplyDelete