Thursday, 25 June 2020

सपना बड़ा था रात छोटी होगई.....

सपना बड़ा था रात छोटी पड़ गई।
ख्वाब हकीकत में बदलते बदलते रह गया।।

कांटे सूख कर ही टूटते हैं।
फूल क्यो खुश होकर बिखरते हैं?

सच्चाई पर चलने वालों को क्यो लोग समझते नही।
झूठ फरेब करने वाले क्यों सीना ठोंक कर चलते हैं?

काश कभी हसीन ख्वाब मेरे रूबरू होते।
प्रभाती किरणों की तरह मुझसे मिल लिए होते।।

उम्मीद कभी तुम भी ऑ कर पीठ थपथपाती।
तसल्ली की पंखुरियों से दामन महका जाती।।

            *****0*****0*****

                     उर्मिला सिंह

 

4 comments:

  1. सुन्दर रचना...
    सत्य तो सत्य ही होता है किंतु झूठ में भी छाड़िक चमक अधिक होती है...
    💐💐

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  2. बहुत सुंदर दी एक व्यथा सी है ये जिंदगी ।
    यहां विडम्बनाएं और विसंगतियों का जाल बिछा है।

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  3. प्रिय अनिता सैनी जी हमारी रचना को शामिल करने के लिये हार्दिक धन्यवाद।

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  4. सच्चाई पर चलने वालों को क्यो लोग समझते नही।
    झूठ फरेब करने वाले क्यों सीना ठोंक कर चलते हैं?
    बहुत सुन्दर सटीक एवं सार्थक सृजन।

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