Monday, 22 June 2020

बहुत दिनों से रोये नही हम........

बहुत  दिनों से रोये नही ,क्या पत्थर के होगये हम
लाखों सदमे हजारों गम फिर भी होती नही पलके नम।।

इल्जाम लगें हैं  बहुत पर किस-किस को समझाएं हम
इल्जामों की बस्ती में एहसास को बारहा तरसे हम।।

आंसुओं को मोती कहती है ये दुनिया, जाने- ज़िगर
अश्कों के मोती पलकों के साये में छुपाये रखते हम।।
 
जितना खुलते हैं उतनी गिरह पड़ती जाती बेवजह
अब तो ये आलम है ख़ुद से बात करने सेें कतराते हम।।

यादें वादों की मृगतृष्णा के जाल में फंसे भटकते रहे हम जीवन का शाश्वत सत्य समझ सारी उम्र रहे जीते हम।।

                  *******0******0*******
                                                      उर्मिला सिंह,



 


15 comments:

  1. मर्मस्पर्शी रचना, अद्भुत, आपकी लेखनी के कायल है हम....

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    1. स्नेहिल धन्यवाद प्रिय प्रीती।

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  2. बहुत दिनों से रोये नही ,क्या पत्थर के होगये हम
    लाखों सदमे हजारों गम फिर भी होती नही पलके नम।।

    इल्जाम लगें हैं बहुत पर किस-किस को समझाएं हम
    इल्जामों की बस्ती में एहसास को बारहा तरसे हम।।
    हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय दी अद्भुत है आपकी लेखनी .
    सादर प्रणाम

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    1. सराहना के लिए आभार प्रिय अनिता सैनी जी।

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  3. अच्छी रचना का सृजन ...
    दिल को छू लिया...
    मार्मिक ...
    💐💐

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  4. वाह!उर्मिला जी ,बहुत खूब!

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    1. हार्दिक धन्यवाद शुभा जी।

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 24 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हमारी रचना को "पांच लिंकों का आनन्द पर"
      साझा करने के लिए हार्दिक धन्यवाद पम्मी जी।

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  6. अच्छा सृजन ।

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  7. शुक्रिया हर्ष महाजन जी।

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  8. बहुत दिनों से रोये नहीं...वाह!

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    1. हार्दिक धन्यवाद नीतीश तिवारी जी।

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  9. वाह्ह्ह्ह दी लाजवाब !!
    सिर्फ उमर्दा ही नहीं सार्थक तथ्य समेटे हर शेर शानदार।

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    1. सराहना के लिए स्नेहिल धन्यवाद प्रिय कुसुम।

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