Friday, 26 June 2020

गुलदस्ता.....

दुनियां की इन संकरी गलियों से बेदाग गुज़र जाते तो-
अच्छा था,
नेताओं के, अल्फाजों ,लहजों में सलीका आ जाये तो-
अच्छा था।।

ऐ दिल ! मुश्किल है बहुत  जीना ,नफ़रत की ताकत क्षिण होती जाती है,
कौन है अपना कौन पराया दिल बिन समझे रह जाये तो- अच्छा था।।

ख़ामोश निगाहें खामोश हो तुम, खामोशी भी कुछ कहने को मचलती,
इश्क़ की दरिया  में डूब के दिल निकल जाये तो -अच्छा था।।

काँच की कतरनं जैसी है पूरी खुदाई ,कौन करे जख्मों की निगरानी,
जमाने के हर दर्द को हंस -हस के ये दिल सह जाये तो-
अच्छा था।।

लहरों पे सवार जिन्दगी यूँ ही पल-पल गुज़रती जाती है 
आवाज किनारों से देकर के कोई बुला ले तो -अच्छा
 था।
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                                    उर्मिला सिंह



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