सारा जग मधुबन लगता है।
जब प्यार तुम्हारा मिलता है।
बिना प्यार कुवारी लगती बहुरिया,
मन पीड़ा का सागर लगता है।।
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अपनी वाणी प्रेम की वाणी,
जब जग में हो जाए सबकी
तब इंसा का दिल प्रेम सभा हो जाए
दर्द पराया भी अपना हो जाए।।
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नयनों में स्वप्न सजे हाँथों में मेहदी रचे।
स्वप्न न कोई हो अधूरे ऐसा कोई मीत बने।।
जब नयन शर्मीले झुक- झुक जाए......
तब मुस्काते अधरों पर प्यार के फूल खिले।।
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मन को जाने कैसा रोग लगा क्या बतलाऊँ।
बिन उजास के उजहास लगे खुद से शरमाऊं।।
जेठ लगे सावन भादों जैसे धूप लगे सांझ बसन्ती।
पाती प्रिय की पल-पल ह्रदय लगाऊँ मुस्काउं।।
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सावन के झूलों को तरसे पेड़ों की डाली।
द्वार बुहारे आ -आ कर के पुरवाई।।
कब पायल छनके कब उड़े चुनरिया धानी,
गालों पर हाथ रखे सोचे गोरी मतवाली।।
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उर्मिला सिंह
अति सुन्दर मुक्तक...
ReplyDeleteअच्छी रचना ...💐💐