Saturday, 2 May 2020

शोहरत पर मत कर अभिमान

शोहरत की मदिरा पर 
मत कर इतना गुमान रे इंसान
मत कर इतना अभिमान !

 है ये चार दिनों का खेला 
आज है कल मिट जाए रें इंसांन
मत कर इतना अभिमान !

महल अटारी ढह जायेंगे 
सत्कर्मों का लेखा जोखा ही नाम तेरा फैलाएगे 
माया लोभ के वस मैं आकर 
नफ़रत के जाल क्यों फैलाये रे इंसान,
मत कर इतना अभिमान !

जब छाये रात घनेरी ,
जब सूझे ना पथ दूजा कोई 
अंतर्मन का दीप तेरा राह दिखाए रे इन्सान,
मत कर इतना अभिमान !

परोपकारी के राहों में काटें 
बन पुष्प बिखर जाएं रे इंसान ,
मत कर इतना अभिमान !

 श्रेष्ठ वही जीवन जो 
 औरों के दुख दर्द में 
 करुणासिक्त बन बांह गहे रे इंसान 
  मत कर इतना अभिमान !

 मन मंथन कर सोच जरा 
 मानव निर्मम बन भवसागर
  कैसे पार करे रे इंसान ....
 मत कर इतना अभिमान।
     *****0*****0*****
                                   उर्मिला सिंह
 
 
 
 
 
 
 
 
 






10 comments:

  1. महल अटारी ढह जायेंगे
    सत्कर्मों का लेखा जोखा ही नाम तेरा फैलाएगे
    माया लोभ के वस मैं आकर
    नफ़रत के जाल क्यों फैलाये रे इंसान,
    मत कर इतना अभिमान !
    बहुत सुंदर और सार्थक रचना दी 👌

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    1. स्नेहिल धन्यवाद प्रिय अनुराधा जी।

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  2. हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी हमारी रचना को साझा करने के लिए।

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  3. वाह!!बहुत खूब उर्मिला जी । सब कुछ जानता है इंसान ,यहीं दरा रह जाएगा सब ,फिर भी करता है गुमान ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद शुभ जी ।

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  4. Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया मान्यवर ।

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  5. श्रेष्ठ वही जीवन जो
    औरों के दुख दर्द में
    करुणासिक्त बन बांह गहे रे इंसान
    मत कर इतना अभिमान !
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर सार्थक लाजवाब सृजन।

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  6. बहुत सुंदर और सार्थक सृजन दी ।

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