Saturday, 23 May 2020

पद चिन्ह.....

ख्वाबों के  
ज़मीन पर
जिंदगी की 
बिखरी रेत पर
कुछ पदचिन्ह 
आज भी--
 दिख रहें हैं 
 धुंधले- धुंधले..
 शायद दर्द के 
 सागर ने अपना
 अधिपत्य जमा लिया।

मन ने चाहा 
देखना .....
उन पद चिन्हों को
पुनः.......
पर वक्त की लहरें
 भला क्यों छोड़ेगी,
 उन  के नामो निशान ।

  कल, और लहरे
  आएंगी.....
  मिटा जाएंगी 
  पद चिन्हों को
  बस रेत ही रेत दिखेगा..।

  पद चिन्हों की......
  सिसकियाँ 
  लहरों में...
  दब के रह जाएगी,
   दिल के कोने -में,
  या मशाल बन जलेगा ...
   प्रेरणा का स्रोत
   बन ....
   कर्तब्य की ....
   राह दिखाएगा।।
        ***0***
                 उर्मिला सिंह

13 comments:

  1. सागर तट के रेत पर बने पदचिन्हों की भांति जीवन की अनेकानेक कहानियां कैसे बनती बिगड़ती रहें गी इसका चित्रण इस रचना के माध्यम से अच्छी प्रकार से किया गया है....
    अच्छी रचना....

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  2. धन्यवाद सिंह साहब

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  3. आभार यशोदा जी हमारी रचना को शामिल करने के लिए।

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  4. Replies
    1. ह्रदय से आभार आपका मान्यवर

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  5. पद चिन्हों की......
    सिसकियाँ
    लहरों में...
    दब के रह जाएगी,
    दिल के कोने -में,हृदयस्पर्शी रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनुराधा चौहान जी।

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  6. शुक्रिया रविन्द्रसिंह जी,हमारी रचना को शामिल करने के लिए।

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  7. सुन्दर प्रस्तुति

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  8. ख्वाबों के
    ज़मीन पर
    जिंदगी की
    बिखरी रेत पर
    कुछ पदचिन्ह
    आज भी--
    दिख रहें हैं
    धुंधले- धुंधले..
    शायद दर्द के
    सागर ने अपना
    अधिपत्य जमा लिया।... बेहतरीन सृजन आदरणीय दीदी 👌

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    1. ह्र्दयतल से धन्यवाद प्रिय अनिता सैनी जी।

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  9. वक़्त बेरहम है ... मिटा देता है निशाँ पर फिर भी एक प्रेरणा रहती है उन निशानों की जगह जो प्रेरित करती है चलने को ...

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