मन ने कहा.....
चलो कुछ दिन के लिये
गाँव की ओर चलते हैं...
जंहा आज भी नीम के नीचे
एक खटिया पड़ी होगी !
जहाँ सूरज भोर में ...
शाख़ों के मध्य से...
झांकता होगा !
जहां किरणे पत्तियों की चलनी से
छन- छन के पड़ेगी तन-मन पर !
मीठी - मीठी भोर ....
मीठी गुड़ की चाय....
चलो कुछ दिन के लिए...
गांव की ओर चलतें हैं।
शाम होते ही ..
बदल जाता है माहौल..
थके निढाल से बापू..
जहां आकर खटिया पर से
गुड़ और एक लोटे पानी की
चाह रखते हैं !
जहाँ सूरज के लुप्त होते ही...
चाँद झांकने लगता है !
चलो कुछ दिन के लिए ..
गाँव की ओर चलते हैं !
आज भी सभी कुछ वैसा ही होगा
कुछ बदला होगा तो सड़कें,
पनघट की जगह -
हैंडपम्प ने ले लिया होगा !
पगडंडियाँ देती नही होंगी दिखाई
वही राम - राम भैया कहना...
सभी कुछ वैसा ही होगा !
चलो कुछ दिन के लिये...
गांव की ओर चलते हैं !
हर रिश्ते जी भर के जीतें हैं...
जहाँ रिश्तों में जीवन होता है..
जहाँ मिट्टी में कर्म की खुशबू-
आशा, विश्वास ,आस्था का---
अद्भुत संयोग होता है !
जहां प्राचीन संस्कृति की
आज भी झलक मिलती है !
चलो कुछ दिन के लिये...
गांव की ओर चलते हैं।।
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🌷उर्मिला सिंह
गाँव है तो नीम है,वरना शहर तो खाते जा रहे है....
ReplyDeleteधन्यवाद प्रीती।
Deleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया मान्यवर।
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