Sunday, 5 July 2020

विकल मन पूछता है......

विकल मन पूछता है......

कहाँ गए पहले  से दिन
कहाँ गई वो शामें
कहां गए वो हसीं नज़ारे
क्यों लगते गमगीन चाँद सितारे।।

विकल मन पूछता है......

दिखती हैं बस सुनी सड़कें
होठों पर हैं सबके तालें
मायूसी ही मायूसी का आलम
क्यों वक्त के कैदी होगये हम।

विकल मन पूछता है.......

सखियों के संग की मस्ती
बातों में मस्ती की खुमारी
खो गए कहीं एक दूसरे के बिन
अब तो खाली खाली लगते दिन।।

विकल मन पूछता है.......

यूँ तो बाते होती रहती हैं 
वाट्सप पर अंगुलिया चलती  हैं
शब्द शब्द आपस में बाते करते हैं
हम सब अहसासों में खोये रहतें हैं

विकल मन पूछता है.......
   ******0******


       उर्मिला सिंह


5 comments:

  1. हार्दिक धन्यवाद डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी।

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  2. वाह!समय की धारा बदलती का बहुत ही सुंदर चित्रण.कोरोना के बाद बहुत कुछ बदल जाएगा.बेहतरीन दी 👌

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  3. शुक्रिया अनिता जी ।

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  4. इस केरोना काल मे केवल एहसासों के जरिये ही ब्यक्ति अपनी जीवन शैली को गति प्रदान करने का प्रयास कर सकता है...
    सामयिक रचना..
    सुन्दर रचना...
    💐💐

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