विकल मन पूछता है......
कहाँ गए पहले से दिन
कहाँ गई वो शामें
कहां गए वो हसीं नज़ारे
क्यों लगते गमगीन चाँद सितारे।।
विकल मन पूछता है......
दिखती हैं बस सुनी सड़कें
होठों पर हैं सबके तालें
मायूसी ही मायूसी का आलम
क्यों वक्त के कैदी होगये हम।
विकल मन पूछता है.......
सखियों के संग की मस्ती
बातों में मस्ती की खुमारी
खो गए कहीं एक दूसरे के बिन
अब तो खाली खाली लगते दिन।।
विकल मन पूछता है.......
यूँ तो बाते होती रहती हैं
वाट्सप पर अंगुलिया चलती हैं
शब्द शब्द आपस में बाते करते हैं
हम सब अहसासों में खोये रहतें हैं
विकल मन पूछता है.......
******0******
उर्मिला सिंह
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी।
ReplyDeleteवाह!समय की धारा बदलती का बहुत ही सुंदर चित्रण.कोरोना के बाद बहुत कुछ बदल जाएगा.बेहतरीन दी 👌
ReplyDeleteशुक्रिया अनिता जी ।
ReplyDeleteइस केरोना काल मे केवल एहसासों के जरिये ही ब्यक्ति अपनी जीवन शैली को गति प्रदान करने का प्रयास कर सकता है...
ReplyDeleteसामयिक रचना..
सुन्दर रचना...
💐💐