कुछ दिनों पहले मैने एक
मुरझाए पौधे को देखा,
उसे देखती रही ...
बिना पलक झपकाए ।
ऐसा लगा मानो वो मुझसे ...
कुछ कहना चाह रहा हो ,
कुछ पल यूँ ही बैठी रही...
फिर लगा धीमी-धीमी....
आवाज आरही है ।
मैंने उसे पहले पानी पिलाया...
उसमें खाद पानी ...
नित्य के आदत में शामिल होगया।
देखते देखते पौधे के चेहरे पर..
हरियाली छा गई ,
मैं नित्य उससे बाते करती ...
वो खुश हो जाता ।
एक दिन उसने मुझसे कहा.....
"मित्र बड़ा होकर मैं....
अपनी शाख़ों पर पुष्प खिलाउँगा...
तुम्हारे घर को.....
खुशबू से भर दूँगा" !
रंग बिरंगी तितलियों से...
तुम दोस्ती करना....
शाख़ों पर चिड़ियों का ....
कलरव गान तुम्हे ...
नित जगायेगा" ....
मैं हँस पडी....!!
एक दिन सो कर उठी तो....
खिड़की के पास से...
हवाके झोंको से मीठी-मीठी
खुसबू आरही थी.....।
में आँख मलते - मलते
अपने उस प्यारे ...
मित्र के पास पहुची....
मैंने उससे हँस के कहा...
"मित्र तुमने वादा पूरा कर दिया" !!
उसने खुशी से टहनियां हिलाया...
मुस्कुरा कर बोला.....
" जो वादा न निभाये ...
वो दोस्त कैसा..!
जो रहम दिल न हो
वो इंसान कैसा...."!!
उर्मिला सिंह
आज की आपा - धापी से भरी ज़िंदगी में आधुनिक इंसान प्रकृति से दूर होता जा रहा है ...
ReplyDeleteजबकि प्रकृति मनुष्यों की हर क्षेत्र में सदैव सहयोग करती है...
जो प्रकृति के जितना भी करीब होता है वह उतना ही प्रसन्न और स्वस्थ रहता है..
यह रचना परोक्ष रूप से ज्ञान बोध करा रही है कि प्रकृति का सहयोग करो और स्वतः अनेक गुना सहयोग/लाभ प्राप्त करो....
जी आभार आपका।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर सृजन दी मित्रता पर सुंदर उद्गार।
ReplyDelete