बारिष का मौसम
कागज की नाव,
ढूढू कहाँ बचपन ,
वो बचपन का गाँव!
सपने हुवे जवाँ
बचपन भूलता गया,
गुड़ियों का संग भी
छूटता गया!
दुनियाँ के झमेले में
ऐसे गुम हुवे
बस सफ़रे जिन्दगी
तय करते रहे!
देख बूंदों की झड़ी
यादों में कोंध जाती
पेड़ की शाख़ों पर
पड़ी झूले की कड़ी
मन करता बच्ची बन
बारिष में भिगूँ......
समझाए कोई मुझको
मन को कैसे मैं रोकूँ!
भीगना गिर के उठना
छपाक-छपाक खेलना
भुलाये नही भूलती ...
वो मीठी फुहारें
सतरंगी बहारे
वो कागज की कश्ती...
वो गलियों की नदिया।।
उर्मिला सिंह
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteआप अन्य ब्लॉगों पर भी टिप्पणी किया करो।
तभी तो आपके ब्लॉग पर भी लोग कमेंट करने आयेंगे।
ह्रदय तल से धन्यवाद मान्यवर।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी हमारी रचना को शामिल करने के लिए।
ReplyDeleteबचपन की यादें दिलाती सुंदर रयना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुजाता प्रिय जी।
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनिता जी।
Deleteबहुत सुंदर सरस सृजन है दी मनभावन।
ReplyDeleteस्नेहिल धन्यवाद प्रिय कुसुम जी
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी
ReplyDeleteह्र्दयतल से धन्यवाद प्रिय अनुराधा चौहान जी।
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