काले मेघा घिर-घिर आये...
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काले मेघा घिर-घिर आये.....
बिन बरसे मत जाना
रात है काली दिल में उदासी
नैना बरसे मत जाना।।
सोंधी मिट्टी इत्र सम महके
तेरे आने से खुशिया बरसे
ताल ,तलैयों के दिन फिर आये
नदिया हर्षे मत जाना।।
बाग बगीचा इतराये
डाली डाली झूमें,
रंगबिरंगी तितली घूमें
लहराती मधुर बयार मेघा मत जाना।।
अधखिली कलियां खिली
फूलों की मुस्काने प्रीत भरी
मनचले भ्रमर बागों में फेरी डालें
गोरी को नईहर की याद सताए
बिरना नही आये मेघ मत जाना।।
खेतों में रोपे बीज धान के
नयन प्रतीक्षा रत तेरे आगमन के
नवांकुर उगने को आतुर
सपने पूरे होने को व्याकुल
तुझे देख अन्नदाता प्रमुदित होजाये
कृषकों के जीवन आधार मेघा मत जाना।।
काले मेघा घिर-घिर आये ......
बिन बरसे मत जाना........।।
. उर्मिला सिंह
हार्दिक धन्यवाद दिग्विजय अग्रवाल जी!हमारी रचना को शामिल करने के लिए।
ReplyDeleteसामयिक और सुन्दर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मान्यवर।
Deleteसावन के मौसम के हर पल को बख़ूबी लिख दिया ...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद दिगम्बर नासवा जी सराहना के लिए।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति।
ReplyDeleteआभार आपका सुजाता प्रिया जी।
Deleteवाह
ReplyDeleteआभार आपका।
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