बढ़ती मानसिक विकृतियां.......
और कलम
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तनाव मानव जीवन को प्रभावित करता है। आज का पत्येक इंसान भौतिक सुख साधनों को जुटाने के लिए कुछ भी करने को तैयार होता है। जिसके परिणाम स्वरूप इंसान मानसिक तनाव से ग्रसित हो जाता है। तनाव का मतलब ही होता है अशांति ।और ये अशांत मन ही धीरे -धीरे तनाव ग्रस्त होने लगता है।
प्रकृति की तरफ भी यदि एक नजर डालें तो देखें गे की यदि आकाश अशांत है तो वायुयान उड़ान नही भर पाते हैं , अथवा ऐसी अवस्था में उड़ान भरने पर उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। तूफान की अवस्था में सागर अशांत हो जाता है।धरा अशांत है तो पशु पक्षी बेहाल हो जातें हैं,उनमे खलबली पैदा हो जाती है।
कहने का तातपर्य यही है की अशांत मन तनाव से घिर जाता है। प्रकृति भी इससे अछूती नही है । ऐसी स्थिति में शारीरिक एवम मानसिक दशाओं पर भी इसका कुप्रभाव पड़ता है तथा यहीं से विकृत मानसिकता का प्रादुर्भाव होता है।
वास्तव में इन कुप्रभावों से बचने की शुरुआत बचपन से ही करनी चाहिये। इसकी प्रारंभिक जिम्मेदारी सरकार की होनी चाहिये । स्कूल- कॉलेज में अन्य विषयों के साथ "नैतिक शिक्षा" को एक विषय के रूप में पढाना चाहिए । जो बहुत पहले पढाया भी जाता था। आजकल विकास के साथ साथ मानव तनाव का भी विकास हो रहा है, या यूँ कह लीजिये की तनाव आधुनिक समाज की देन है। समाज, परिवार ,सरकार के योगदान से इसे दूर नही तो कम अवश्य किया जा सकता है।
सर्वप्रथम अनुशासन और दन्ड की समुचित व्यवस्था से विकृत मानसिकता को रोकने का प्रयास किया जा सकता है । जो विष की तरह यह फैलता जा रहा है। सरकार की कार्य प्रणाली में इस विषय को प्राथमिकता मिलना चाहिये , इस विष को समाप्त करने के लिए सरकार के साथ माँ - बाप ,परिवार और समाज को भी जागरूक होना पड़ेगा ।पक्ष विपक्ष और धर्म इन तीनो के मध्य नैतिकता आहे भर रही है।इन सबसे अलग सोच रखनी पड़ेगी,और समाज में परिवार में नारियों को सम्मान देना पड़ेगा।
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🌷उर्मिला सिंह
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