मन के गहराते भावों से नित सघर्ष करती एक रचना.....
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मन में दहकते जब शोले है भावो से टकराते जब मेले है,
चिनगारी बन शब्दों से निकल,
पन्नो पे उतरने लग जाती है ;
तब कविता- कविता कहलाती है !
जब मन की पीड़ा चुभने लगती है ,
जब तन्हाई ही तन्हाई होती है ,
जब शब्दो का सम्बल ले कर के ,
मन की गांठे खुलने लगती हैं ;
तब कविता - कविता कहलाती है !
जब भूखा - नंगा बचपन भीख मांगता है ,
चौराहो पर नारी की अस्मत लूटी जाती है,
कानून महज मजाक बन रहजाता है ,
आँखों से टपकते विद्रोह जब शब्द बनाते है ;
तब कविता - कविता कहलाती है !
राजनीती में जब धर्म-जाति को बाटा जाता है
सिंहासन के आगे जब देश गौड़ हो जाता है ,
युवा जहाँ ख्वाबों की लाश लिये फिरते हैं ,
उनकी आहों से जब शब्द धार ......बनातेहै,
तब कविता - कविता कहलाती ......... है ।
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🌷उर्मिला सिंह
हार्दिक धन्यवाद मान्यवर
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