Thursday, 6 June 2019

दहकते शोले.....

मन के गहराते भावों से नित सघर्ष करती एक रचना.....
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मन में दहकते जब शोले है                                    भावो से टकराते जब मेले है,
चिनगारी बन शब्दों से निकल,
पन्नो पे उतरने  लग जाती है ;
तब कविता- कविता कहलाती है !

जब मन की पीड़ा  चुभने लगती है ,
जब  तन्हाई  ही  तन्हाई  होती   है ,
जब शब्दो  का  सम्बल  ले  कर के ,
मन  की  गांठे  खुलने  लगती   हैं ;
तब कविता - कविता कहलाती है !

जब भूखा - नंगा बचपन भीख मांगता है ,
चौराहो पर नारी की अस्मत लूटी जाती है,
कानून महज मजाक  बन रहजाता  है ,
आँखों से टपकते विद्रोह जब शब्द बनाते है ;
तब कविता - कविता  कहलाती  है  !

राजनीती में जब धर्म-जाति को बाटा जाता है
सिंहासन के आगे जब देश गौड़ हो जाता  है ,
युवा जहाँ ख्वाबों की लाश लिये फिरते हैं ,
उनकी आहों से जब शब्द  धार ......बनातेहै,
तब  कविता - कविता  कहलाती ......... है ।
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                     🌷उर्मिला सिंह
   
  



    

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