Tuesday, 25 June 2019

प्रिय तुम जो आजाओ.......

नारी प्रेम समर्पण की प्रतिमूर्ति होती है उन भावों को छलकाती मेरी रचना........
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कंचन कलश सजाऊँ
आँगन ड्योढ़ी अल्पना उकेरू
भावों के प्रसून चुन
प्रीत के धागों में बाँधू
प्रिय!  तुम जो आ जाओ.......!!

रजनी गन्धा की खुशबू सी
महकू ,बहकूँ दीवानी सी
छलकाऊँ नेह गंग अविरल
नयनन आंजू प्रीत का काजल
प्रिय!  तुम जो आ जाओ.......!!

करेगी पायल मेरी झनकार
लहराये गी चूनर बारम्बार
खनकेगाा हाथ का कंगन
जलेगा मंगल दीप आँगन
प्रिय!  तुम जो आ जाओ........!!

ये बन्धन युगों - युगों का
प्रेम साश्वत जीवन का
साँसों में  घुल  मिल  जायेगा
विकल प्राण नव गान सुनायेगा
प्रिय!  तुम जो आ जाओ......!!
     
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                       🌷उर्मिला सिंह





5 comments:

  1. कोमल भावों से सजी बहुत ही रचना दी
    प्रणाम

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  2. हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनिता।

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  3. अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

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