नारी प्रेम समर्पण की प्रतिमूर्ति होती है उन भावों को छलकाती मेरी रचना........
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कंचन कलश सजाऊँ
आँगन ड्योढ़ी अल्पना उकेरू
भावों के प्रसून चुन
प्रीत के धागों में बाँधू
प्रिय! तुम जो आ जाओ.......!!
रजनी गन्धा की खुशबू सी
महकू ,बहकूँ दीवानी सी
छलकाऊँ नेह गंग अविरल
नयनन आंजू प्रीत का काजल
प्रिय! तुम जो आ जाओ.......!!
करेगी पायल मेरी झनकार
लहराये गी चूनर बारम्बार
खनकेगाा हाथ का कंगन
जलेगा मंगल दीप आँगन
प्रिय! तुम जो आ जाओ........!!
ये बन्धन युगों - युगों का
प्रेम साश्वत जीवन का
साँसों में घुल मिल जायेगा
विकल प्राण नव गान सुनायेगा
प्रिय! तुम जो आ जाओ......!!
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🌷उर्मिला सिंह
कोमल भावों से सजी बहुत ही रचना दी
ReplyDeleteप्रणाम
शुक्रिया अनिता
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रिय अनिता।
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
ReplyDeleteहार्दिक धन्य वाद जी
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