Sunday, 1 December 2019

सुनहरा शहर अब कहीं खो गया.....

सुनहरा शहर अब कहीं खो गया है
सिसकती रातों में शहर सो गया है
भावनायें मर चुकी आह भरता जिस्म.....
विवेक शून्य पत्थर इन्सान हो गया है!!

कायर दरिंदां पुरुष वर्ग अब होगया 
जानवर से भी बदतर इन्सान होगया 
कब तक न्याय को तरसती रहेंगी नारियां 
दरिंदगी की आग में जलती रहेंगी नारियां!! 

तुम्हें पुरुष कहने में भी शर्म सार शब्द होते 
तुम से,बाप भाई के नाम भी कलंकित होते 
लाश को भी,तुम जैसे निकृष्ट जब नहीं छोड़ते 
कैसे तुम अपनी बहन बेटियों को होगे छोड़ते!! 

हर बार यही होता है हरबार यही होगा 
जुबान पर ताला बहरा कानो वाला होगा 
संविधान की दुहाई देने वाले ख़ामोश रहेंगे बस 
व्यथित कलमकार रिसते घावों से पन्ने भरता होगा!! 

               .... उर्मिला सिंह.... 

















Shb

6 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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  2. Replies
    1. हार्दिक धन्य वाद लोकेश नदीशजी

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  3. वाह!!बहुत मर्मस्पर्शी रचना ।

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