Friday, 6 December 2019

नारी की विवशता........

हालात के परिवेश जब बदल जाते हैं
न्याय की कुर्सी डगमगाने लगती है
कहीं जनाक्रोश कहीं राजनीत के खिलाड़ी
कहीं मानवाधिकार की तर्क हीन बातें 
इसी भंवर में उलझ जाती है 
नारी की अस्मत बेचारी!! 

कैसे न्याय मिले नारी को.......? 

लोकतंत्र है यहां पुलिस पर पथराव हो पुलिस तमाशा देखे, 
वहशी दरिन्दे भागे पुलिस पर आक्रमण करें पुलिस मौन रहे, 
नारी को जलाया जाय रेप किया जाय.अपराधी को कारावास से जमानत पर छोड़ दिया जाय,तारीख. पर तारीख पड़ती रहे जिस का रेप हुआ मर जाय जला दी जाय क्या फर्क पड़ता है उस औरत,बच्ची की चीखें किसी के कानों मे सुनाई नहीं पड़ती क्योंकि लोकतंत्र है भारत में!
             . परंतु एक बात कहना चाहूँगी और पूछना भी  कि क्या अपनी बहू-बेटियों के साथ ऐसा होता तब भी उनके विचार यही रहते? क्या. उनकी चीखें उन्हें नहीं सुनाई देती?  क्या उस समय भी उनके विचार इतने संतुलित नेक और लोकतंत्रवादी होते? दिल. पर हाँथ रख कर सोचे, ये सिर्फ और सिर्फ भावनाओं का विषय नहीं....... 
            सच कहा है.... 
          "  जाके पांव न फटी बीवाई 
            वो क्या जाने पीर पराई" 

                  उर्मिला सिंह 


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