कहीं बदबूदार गलियों में भूखे पेट सोया करे कोई!
पीते दूध रोजी टॉमी ,सुगन्धों से नहाया करे कोई!!
आस्था,धर्म को कलंकित करते है ये पाखंडी!
इनकी दुकाने बन्द करने का हौसला करे कोई!!
ज़मीर जिनका मर चुका है उनसे उम्मीद ही क्या!
गमलों में नफ़रतों के पौध न उगाया करे कोई!!
धूप उल्फ़त की खिलाओ छटेगा कुहरा एक दिन!
जो सरसब्ज ज़मीन थी उसे न सहरा करें कोई!!
देश के रहनुमाओं,चेहरे से फरेब की नकाब उतारो!
गरीबों के घर भी चूल्हा जलने का तैयार मसौदा करे कोई!!
बहुत लिखे पढ़े ग़जल, इश्क मोहब्बत की हमने!
मसली जारही कलियाँ उसपर भी सोचा करे कोई!!
नव वर्ष का स्वागत करें कुछ इस तरह हम सभी!
देशभक्ति से सरोबार रचना भी लिखा करे कोई!!
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उर्मिला सिंह
बहुत सुंदर रचना 👌👌👌
ReplyDeleteहार्दिक धन्य वाद प्रिय नीतू
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्य वाद
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