Friday, 6 December 2019

अहसास......

हमें भी लबों से मुस्कुराना आगया शायद!
नफ़रतों से रिस्ता निभाना आगया शायद!!

दोस्ती गुलशन हैं फूलों का जाना था हमने!
खार से भी दामन सजाना आगया शायद!!

 दिखाते आईना जो ,खुद को खुदा समझते!
 ‎हमें पत्थरों से भी टकराना आगया शायद!!

ग़जल  गीतों  में  बिखर जाता है दर्द जब !
आसुओं को भी रंग बदलना आगया शायद!

लम्हा लम्हा वक्त तन्हाइयों का बढ़ता रहा 
वक्त के सलीब पर लटकना आगया शायद!!
 
कई रंगों के मंजर आंखों में घूम जाता हैं!
एहसासों को दर्द में जीना आगया शायद!!
                                         #उर्मील
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10 comments:

  1. वाह सुंदर ग़ज़ल...
    "एहसासों को दर्द में जीना आगया शायद..."
    उत्तम रचना.....

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  2. हार्दिक धन्य वाद पम्मीजी इस रचना को मंच पर शामिल करने के लिए...

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  3. बेहतरीन सृजन आदरणीया दीदी जी
    सादर

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    1. स्नेहिल धन्य वाद प्रिय अनिता

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  4. बहुत उम्दा दी बेमिसाल सृजन। बहुत सुंदर ग़ज़ल।

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    1. तहे दिल से शुक्रिया प्रिय कुसुम

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  5. वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब गजल।

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  6. हार्दिक धन्य वाद सुधा जी

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  7. Amazing Keep Writing Amazing Content

    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब गजल।

    Nanne Parmar
    techappen
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    1. हार्दिक धन्य वाद Nanne Parmar ji

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