Friday, 6 December 2019

जख्मों को...

सरेआम ज़ख्मों से कैसे पर्दा हटा दूँ!
ज़िगर है घायल आहों को कैसे सुना दूँ!!

 बारीकियां होती हैं ज़ख्मों की ऐ जाने ज़िगर!
 ‎लफ़्ज़ों से कैसे ग़जल की माला बना दूँ!!

एक हम ही नही है जख्मी बेमुरव्वत जहाँ में!
हर शख़्स लहूलुहान, कैसे सुकूते दर्द सिखा
 दूँ!!

तपती दुपहरी दर्द की जब अंतड़िया सूखने लगती!
भूख से बिलबिलाते बचपन को कैसे  दिलासा दिला दूँ!!

ईमान, उसूल,विचार,विश्वास घायल तड़प रहें हैं!
दर्द का एहसास कैसे सियासत को करा दूँ!!
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                                                  #  उर्मिल


                                       




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