कंटकमय पथ विरासत तेरी सम्भल सम्भल कर चलना है !चलन यही दुनिया का पत्थर में तुमको अब ढलना है !
उर की जलती ज्वाला से मानवता को जागृत करना
जख्मी पाँवों से ही नवयुग का शंखनाद अब करना है !!
हरा सके सत्य को हुवा नही पैदा कोई इस जग में !
असत्य के ठेकेदारों का ,पर्दाफास तुझे अब करना है !
वक्त से होड़ लगा पाँवों के छाले अब मत देख !
सुनने को आकुल माँ भारती अब गर्जन करना है !
दृग को अंगार बना हिम्मत को तलवार बनाना है...
दुश्मन खेमें में खलबली मचेे कुछ ऐसा अब करना है !!
तुम सा सिंह पुरुष देख भारत माँ का निहाल नयन है .
कोहरे से आच्छादित पथ है पर कदम न पीछे करना है
मिले हुए शूलों को ही अपना रक्षा कवच बनाना है
कर्म रथ से भारत का उच्च भाल पुनः तुझे अब करना है !!
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🌷उर्मिला सिंह
उत्तम सृजन
ReplyDeleteहार्दिक धन्य वाद अनिता जी
Deleteवाह सुन्दर प्रस्तुतीकरण
ReplyDeleteहार्दिक धन्य वाद जी
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