Friday, 13 December 2019

अलाव जलता....

बहती सर्द हवाओं में....
बर्फ की तरह जम गया 
अपना पन...... 
यादों के अलाव सुलग रहे 
जज़्बातों का  धुआं उठ रहा 
दर्द की चिंगारियां निकल रही 
आँखों में चुभन सी हो रही 
 लगता है अश्क भी  जम गये 
 नामुराद बहते नहीं.... 

अलाव जलता......

माघ की सर्दी 
फटा कंबल 
पिछले साल की रजाई 
जगह जगह से निकलती रुई 
बच्चे कुछ घास-फूस 
कुछ पतली लड़किया लाते 
अलाव जलाते..
उसे घेर के बैठ जाते सभी
सुखी लकड़ियां जलती
बदन में जब गर्मी आती 
तो भूख  का अलाव 
जलने लगता....... 

अलाव जलता...... 

स्वेटर पहने, शोले ओढ़े 
लोग अलाव जला कर बैठे 
गजक रेवड़ी का लेते आनन्द 
चाय पकौड़ी का चलता दौर 
कहकहे चुटकुले सुनते और सुनाते 
पहरों बैठे रहते दिन भर की 
थकान मिटाते.... 

अलाव  जलता........ 

           उर्मिला सिंह 











13 comments:

  1. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति

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  2. बहुत सुंदर रचना दीदी

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  3. हार्दिक धन्य वाद श्वेता जी मेरी रचना को शामिल करने के लिये

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  4. बहुत ही सुंदर सृजन ,सादर नमस्कार आपको

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    1. हार्दिक धन्य वाद कामिनी जी

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  5. बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति।

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  6. वाह! दर्द का अलाव गरीबी का अलाव और खुशहाली का अलाव सभी का सार्थक शब्दांकन्। शुभकामनायें उर्मिला जी, इस बेहतरीन सृजन के लिए 🙏🙏🙏

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  7. दी बहुत गहराई तक उतरती हृदय स्पर्शी रचना।
    बहुत सुंदर।

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