खंड खंड में बटी खंडित ही रही
साँसे अपनी पर अपनी न रहीं
जीवनदायीनी है पर पूज्यनीय नहीं
गृहलक्ष्मी है पर गृहस्वामिनी नहीं
धर्म ग्रन्थों में वंदनीय है कविताओं में पूज्यनीय है
**************************************
इन्हीं प्रवंचनावो की जीती जागती तस्वीर में आखिर कब तक नारी बन्दी बनी रहेगी? कबतक शोषण होता रहेगा
नारियों का!
यह एक पश्न है जो सभी से है.......
पटाखे, फूल झड़ी, धुआं से प्रदुषण फैलता है! उसके लिए
केंद्र सरकार, राज्य सरकार दूर करने के लिये प्रयत्न शील हैं अच्छी-बात है..........
परन्तु बच्चियों औरतों के साथ जो दरिंदगी का नग्न नृत्य हो रहा है उसके लिये सरकार, राज्य सरकारें
मौन क्यों? ये पश्न किसी एक का नहीं समस्त नारी वर्ग का
है! निर्भया से लेकर आजतक जो भी हुआ किसी को भी न्यायपूर्णतः नहीं मिला क्यों?
यह पश्न यदि आपके भी सम्वेदनशील ह्रदय को द्रवित करता हो तो कृपया नारी के लिये रक्षक के रूप में सामने आयें!
उर्मिला सिंह
अतिसंवेदनशील मुद्दे को उठाती सार्थक रचना। किन्तु, समाज की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण है।
ReplyDeleteहार्दिक धन्य वाद मान्यवर एसे ही मार्ग प्रशस्त करते चलें
Deleteधन्य वाद मान्यवर एसे ही मार्ग दर्शन करते रहें
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteसार्थक प्रस्तुति दीदी
ReplyDelete