Tuesday 16 July 2024

मुजरिम,वकील जज हम्ही.....

मुजरिम वकील जज हम ही हैं
    *******0******
वक्त के साथ साथ रिश्ते भी बदरंग हो जाते हैं 
उम्र के इस मोड पर जीने के मायने बदल जाते हैं।।

मन की कचहरी में मुजरिम वकील जज भी हमीं 
पर सत्य कहने का बता तूं हौसला कहा से लाऊं ।।

 किस यकीं पर उसे अपना कहूं.....
 रोशनी आंखों से छीन ली मेरी जिसने.....।

एक जलजला आया बचा न पास कुछ अब मेरे 
एक खुद्दारी ही रह गई है किस्मत से पास मेरे ।

ढूंढती हूं यकीं का वो गुलशन जो खो गया कहीं 
आस चुपके से अश्कों के कब्रगाह में सो गई कहीं।

              उर्मिला सिंह

Saturday 29 June 2024

टेढ़ी मेढी जीवन राहों की मोड़.....

     उलझे सुलझे रिश्तों की डोर

    टेढ़ी मेढ़ी जीवन राहों की मोड़।

    सोच रहा विचारा व्याकुल मन 

कैसे सुलझाऊं,उलझी गांठों की डोर

    पाऊं कैसे दुस्तर मंजिल की छोर।।

                उर्मिला सिंह


 

Monday 13 May 2024

हम स्वतंत्र हैं

       कुछ न कहिये जनाब  स्वतंत्र हैं हम........

           बोलने की आजादी है --तो

       नफ़रत फैलाने की स्वतन्त्रता---- भी

       लिखने पर कोई रोक टोक नही --तो

       शब्दों की गरिमा भी समाप्ति की.....

       देहरी पर सांसे गिनती दम तोड़ रही है....

       

       कुछ न कहिये जनाब  स्वतन्त्र हैं --हम....


        बच्चे हैं तो क्या हुआ, स्वतंत्र हैं --हम

        मां बाप का कहना क्यों माने.....

        अपनी मर्जी के मालिक हैं -- हम

        हमें पालना जिम्मेदारी है उनकी...

        आखिर बच्चे तो उनके ही हैं --हम।


        कुछ न कहिये ज़नाब स्वतन्त्र हैं --हम.....

        

       गुरु शिष्य का नाता पुस्तकों में होता है...

       आदर भाव तो बस सिक्कों से होता है।

       भावी समाज का निर्माण हमसे होता है...

   संसद से समाज तक  स्वतन्त्रता का परचम.

       लहराते  धर्म नीति की धज्जिया उडातें ...

     स्वतन्त्र  भारत के स्वतन्त्र नागरिक हैं हम

       

    कुछ न कहिये ज़नाब स्वतन्त्र हैं-- हम......!

      त्रस्त सभी इस स्वतन्त्रता से....

       पर आवाज उठाये कौन....!

      स्वतन्त्रता को सीमित करने की ....

      नकेल पहनाए कौन.....!!

                    ***0****

                            उर्मिला सिंह

      



      

    

   

        

        

                                  

        


           

Sunday 31 March 2024

अन कही व्यथा......

अन कही व्यथा

    **********

अनकही व्यथा दर्द का भंडार है

कहूं किससे दर्द में डूबा संसार है

मन  ठूंठ सा लगने लगा है अब.…

दरक्खत से पत्ते गिरने लगे हैं अब...


जिंदगी धूप में  छांव  ढूढती है 

हर पल ख्वाब के सुनहले सूत बुनती है 

खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाएंगे....

इसी एहसास के सहारे सांस चलती है।


ढूंढती रहती आंखें खोए हुवे लम्हों को

हकीकत के चश्में अपनों के चेहरों को

काश फ़साना  बनती न जिन्दगी यूं.....

मौत भी आसान लगती जिन्दगी को।।


सदाए देती हैं ये हवाएं आज भी....

उम्र के पन्नों पर लिखा प्यार का हर्फ आज भी

समझ न पाया ये जग मोहब्बत की बात को

उम्र मोहताज आखिरी सीढियां पार करने को।।


        उर्मिला सिंह

   

             







Saturday 9 March 2024

बस यूं ही....जख्मों की अन कही कहानी....

ज़ख्म से जब जख्म की आंखे मिली

दिल के टुकड़े हुवे जख्म मुस्कुराए.....।


जख्म ने  हंस कर जख्म से पूछा.....

कहो कैसे गुजरे दिन अश्कों के समंदर में...।


अतीत के अंचल के साए में रात गुजरी

दिन की न पूछ यार मेरे की कैसे गुजरी।।




        उर्मिला सिंह

Tuesday 27 February 2024

बस यूं ही......

  
तनहाइयां बेहतर हैं उस भीड़ से जनाब
 जहांअपनापन दम तोड़ता हो ओढ़े नकाब ।।

 मरहम चले लगाने तो गुनहगार हो गए हम
 तेरे यादों के पन्नों में ख़ाकसार हो गए हम ।।

जब तक कलम से भाओं की बरसात नही होती
ऐ जाने ज़िगर हमारी दिन और रात नही होती।।

  यादों की परी मुस्कुरा के इशारों से बुलाती हमे
  बेखुदी में चले जारहे,अब न रोके कोई हमें।।

   शब्दों के अलावा कुछ और नही मेरा....
शजर लगा के बियाबान में भटकता दिल मेरा।।

                   उर्मिला सिंह

Sunday 18 February 2024

नारी...का दर्द

सात भांवरों की थकान उतारी न गई

दो घरों के होते हुवे नारी पराई ही रही।

जिन्दगी का सच ही शायद यही है.....

सभी कोअपनाने में  अपनी खबर ही न रही।।

पर ये बात किसी को समझाई न गई।।

               उर्मिला सिंह