Friday 24 April 2020

औरत बदल न पाई खुद को......

कहकहे लगाती दुनिया के भीड़ में चल रहे सभी!
एक ठहराव आगया जिंदगी में जिन्दगी के साथ!!

दिल न जाने क्यों कभी मोम बन पिघलने लगता!
अश्क बन आँखों से होकर बहता बेबसी के साथ!!

वक्त के साथ बदलता गया इंसान और उसके तेवर!
औरत बदल न पाई बहती रही नदी सी बेकसी के साथ!!

दर्द से रिश्ता निभाना आ गया तुझसे ऐ जिन्दगी!
लबों पे गम छलकता है सलीके से हँसी के साथ!!

गुल  कर  दिया  ख़्वाबों  के चिरागों को हमने !
शब के हाथों खुद को सौप दिया खुशी के साथ!!

नम आँखो का दर्द अश्क बन ढलता नही है!
अश्कों को पीने का हुनर आगया बेबसी के साथ!!
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        .                              उर्मिला सिंह 

Wednesday 22 April 2020

ख़ुशनुमा मौसम......

ख़ुशनुमा  मौसम में  भी पतझड़  होगया हूँ!
आँसुओं को छुपाते छुपाते पत्थर होगया हूँ!!

अच्छा  बुरा  होता  नही  दुनियाँ में  कोई यारों!
हर जितने वाला समझता सिकन्दर हो गया हूँ!!

ग़मज़दा काटों ने हँस कर फूल से कहा !
रश्क करते करते  मैं  जर्जर हो गया हूँ!!

संस्कारों की बात पूछने जाउँ कहाँ नये दौर में!
संश्कारों का दहन देख कर शर्मसार होगया हूँ!!

हौसलों की तलवार लेके चला हूँ राहों पर!
ख़ौफ नही लहरों का मैं समन्दर होगया हूँ!!
         ******0*****0*****'

                                        उर्मिला सिंह 

समय की करवट...

समय  ने  कैसा  रंग  दिखाया  रुग्ण हुई भाषा!
व्याकरण  दीन  हीन, शब्दों ने  अश्क  बहाया!!
संस्कार  प्यार  मोहब्बत, हवन  होरहे जीवन में!
बदले परिवेश ने इंसानियत का तर्पण कर डाला!! 
                                 #उर्मिल

Monday 20 April 2020

नींद.... में भटकता......

नींद.... में भटकता मन..... 
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नींद में भटकता मन 
चल पड़ा रात में, 
ढ़ूढ़ने सड़क पर..... 
खोए हुए ..... 
अपने अधूरे सपन... 

परन्तु ये सड़क तो.... 

गाड़ी आटो के चीखों से 
आदमियों की बेशुमार भीड़ से 
बलत्कृत आत्माओं के 
क्रन्दन की पीड़ा लिए 
अविरल चली जा रही 
बिना रुके बिना झुके l 

लाचार सा मन 
भीड़ में प्रविष्ट हुआ 
रात के फुटपाथ पर 
सुर्ख लाल धब्बे 
इधर उधर थे पड़े 
कहीं टैक्सियों के अंदर 
खून से सने गद्दे 
लहुलुहान हुआ मन 
खोजती रही उनींदी आंखे 
खोजता रहा  बिचारा मन 

 आखिरकार लौट आया 
 चीख और ठहाकों के मध्य 
 यह सोच कर कि...... 
 सभ्य समाज के 
 पांओं के नीचे..... 
 किसी की कुचली...... 
  इच्छाओं के ढेर में.... 
 दब कर निर्जीव सा 
 दम तोड़ दिया होगा 
खोया हुआ मेरा..... 
अधुरा सपन........ 
*****0*****0****
उर्मिला सिंह 










Saturday 18 April 2020

नजरों से नजरों का मिलना........

नज़रों से नजरों  का  मिलना मन को
                            अच्छा लगता है!
नजरों को  नित ख्वाब देखना तेरा
                           अच्छा लगता है!
                          
 नजर,नजऱ की गुफ़्तगू स्वासों का बढ़ना
                                अच्छा लगता है!
 मधुमास,में  कोयल  की कूक ह्रदय को
                                 अच्छा लगता है!
                            
नजर झील में प्रीत कमल का खिलना
                               अच्छा लगता है!
मौन अधर मुग्ध नजर की भाषा  पढ़ना
                                अच्छा लगता है !
                                
खनके नूपुर महावर के,अकुलाना तेरा
                               अच्छा लगता है !
                               
 प्रीत की मादकता में नज़रों का झुक जाना 
                               अच्छा लगता है !  
                       ****0****                          
              🌷 उर्मिला सिंह                         
                           
                                                           
                          
                               
                           

Tuesday 14 April 2020

जिन्दगी की किताब.....

जिन्दगी की किताब में
मैंने तेरा नाम लिख तो दिया
पर वक्त ने हँस के पूछा - - -
पहिचानोगी कैसे?
ह्रदय ने कहा......
उसके स्नेहिल एहसास.....से 
 जो दिल के करीब रहतें हैं
वक्त  खिल खिला के हँस पड़ा
हँसते क्यों हो..? 
मैं वक्त हूँ.....
लोग गहरे से गहरे रिश्ते भी....
भूल जाते हैं.....
एहसास सिसकता रह जाता है
यही दुनिया की रीत है......

मौन.....

वाणी को ही नही
मन को मौन होने दो
लेखनी को ही नही
शब्दों को मौन होने दो!

मौन की मुस्कान....
कुछ और गहरी होने दो
अन्तर्मन में चलते द्वंद को .
मौन सागर में प्रवहित होन दो!

ह्रदय - तम आलोकित
सरल स्वच्छ हो जाने दो
मौन - साधना मे लिप्त मन - 
को सरल प्रवाह में बहने दो...! 

मौन  ह्रदय  तट से 
सतरंगी  पुष्प झरने दो 
अन्तर्मन के मौन गूंज से 
जीवन  सुर ताल से सजने दो! 

      उर्मिला सिंह 







Sunday 12 April 2020

ख्वाब देखता रहा चांद तारों का........

पांव ज़मीं पर टिका नहीं, ख्वाब देखता रहा चांद तारों का ता- उम्र इन्सान... 
ज़ज्बा,त्याग, कुर्बानी  सीखा नहीं,इंसानियत का खून करता रहा ता -उम्र इन्सान! 

आँखों में नफ़रत का सागर लिए, धर्म की दुहाई देता रहा  इन्सान...... 
मिट सकी न तृष्णा मन की, आवारा बादलों सा घूमता रहा ता-उम्र इन्सान! 

है फिक्र किसी के जख्मों की  कौन करता यहाँ ..... 
जिन्दा रखने के लिए नमकदान लिए, मौका ढूंढता रहा 
ता - उम्र इन्सान! 

दिख रही बेज़ार सी, हर नज़र वक्त के हाथों यहां.... 
अभिमान में डूबा, दुवा मांगता रहा ता - उम्र इन्सान! 

कद बढ़ाने का आशिक रहा, दिन रात आदमी ... 
पर दिल के दरवाजे सँकरा करता रहा, ता - उम्र इन्सान! 

मुफ़लिसी मे जीता रहा, अच्छे दिनों की आस में आदमी... 
लाश अपनी कन्धों पर उठाए चलता रहा, ता-उम्र इन्सान!! 
                      *****0*****0*****
                                                     उर्मिला सिंह 















Sunday 5 April 2020

नज़ारा दीपक की लौ का.......

कल की रात का नज़ारा
 पलास के बिखरे 
पुष्पों से कम नहीं था..... 

दीपक की लौ...... 
पलास के बिखरे पुष्पों
की तरह धरा को आल्हादित 
कर रही थी ......
आसमा से देव शक्तियां भी
ये मनमोहक नज़ारा
देख आशीषों की वर्षा कर 
नकारात्मकता से मानव मन को
विचलित नहीं होने का संदेश
दे रहीं थीं......

"न हो नर निराश तू 
ये मौसम भी ढल जाएगा 
फिर कुमुदिनी खिलेगी
पलास के फूलों से 
ये मन वृक्ष लद जायेंगे 
बहकने लगेगी डाली डाली 
फिर बागों में बसंत आ जाएगा" "

बीती गई चम्पई चांदनी रात 
अनुरागमई भोर का आगमन हुआ 
ची - ची चिडियों का कलरव 
आशामय किरणों से ..... 
उर सागर में उर्मियां का शोर हुआ 

शीतल हवाओं का मधुर स्पर्श 
भावों, विचारों में हुआ 
सकारत्मक ऊर्जा के संचार से 
नकारात्मकता को नकारने का.... 
मन को दृढ़ विश्वास हुआ 
    *****0****0****
                         उर्मिला सिंह 

Saturday 4 April 2020

पिता को समर्पित रचना..

तेरी बन्द पलकों,.... के पीछे
देखा करती थी.....
पलास के फूलों जैसे 
बिखरे हुए अंगारे 

 खेलते रहे निरंतर....
 उनअगारों से तुम...
 राख में परिवर्तित....
 हो गये एक दिन !
         
  पल-पल सुलगना......
  हर वक़्त तुम्हारा.....
  बहुत करीब से ,
  देखा था हमने........... !
  
  पर न दिया आपने ......,
  बुझाने  का मौका  ...
  कभी.....मुझे....!
 
 आज बिखरा है...
  हृदय में .......मेरे
   राखों का अम्बार....
           तेरा.....!
   
   पर वो चिंगारी --
   नजर आती नही......,
   जो तुम्हे .......,
   राख के ढेर ....
   में परिवर्तित कर गई..... !
      === === ===
  
  दर्द छुपाये हँसते  रहे....
  थे  मिसाल  जिन्दादिली के तुम !
   अपने पास बिठा के मुझको ...
   जाने मुझमें क्या देखा  करते थे  !
   विचारों में रखते थे....
   सागर सी गहराई ...
   मर्यादा संस्कारों का....
    तुम ...सदा ही...
    पाठ पढ़ाया करते थे ! 
  
   अम्बर पर तारे बन........
   चमका करते हो !
    किससे पूछू दर्द तुम्हारा....
    तुम जो मन ही मन झेला करते थे!!
             **********
                                   #उर्मिल