Wednesday 23 June 2021

गजल.....

फ़िर अंधेरे आने न पाए ,रोशनी सम्भल के रहना
चल रहें चालें अंधेरों के मदारी,सम्हल के रहना।।

ये सच है ख़ामोशी की शाख पर ,कडुवे फल नही लगते,
अति ख़ामोशी कमजोरी की निशानी है सम्हल के रहना।।

संघर्षों के बहुतेरे ताप झेलें हैं उजालों की आस में ग्रहण लग न जाये प्रयासों में  सम्हल के रहना।।

भगत सिंह,आजाद ,बोस की कुर्बानियां याद रहे
गिद्ध सी नजरें गडाएँ हैं ,जो देश पर उनसे सम्हल के रहना।

हौसलों की मशाल बुझने न पाये ,पथिक तुम्हारी 
ये कर्म युद्ध की अग्नि है जरा सम्हल के रहना।।

वाणियों से तीर बरसा,बालुवों के महल बनाते ये
फिक्र नही करते जो जलते अंगारों पर चलतेहैं सम्हल के रहना।।

                  उर्मिला सिंह





 


Sunday 20 June 2021

ग़ज़ल...

बादलों की तरह  होती हैं खुशियां कोई जानता   नही ।
कब कहाँ बरस जाएंगी ये खुशियां कोई जानता नही।।
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बद्दुआएं जुबाँ से ही नही दिल से भी निकल जाती हैं
दुखी ह्रदय के आँसूं  भी बद्दुआ बन जाती है।
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संघर्षों, मुसीबतों, परेशानियों से घबराना कैसा...
सितारे अंधेरों में ही चमकते हैं सोच के  देखना ज़रा।।
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परवरदिगार, जुल्म नही करता कभी बंदों पर
अपने
बुराई के अंजाम से  अवगत कराने का भार है उसपे।।
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जिन्दगी-ए सफ़र में  कितना समान रहता है
होतें वे नसीब वाले जिनके संग ईमान होता है।।
                   उर्मिला सिंह
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Saturday 19 June 2021

कोमल सपने...

कोमल सपनो के कोई पंख न काटो
उड़ने दो इनको बन्धन में मत बांधो।।

स्वप्नों को जब आकाश मिलेगा
मन वीणा से सुर गान सजेगा
मेघों से तृप्ति ,किरणों से दीप्ति लिए
स्वप्नों की मेघमाला धरती को सजायेगा।

कोमल सपनो का आरोहण मत रोको
उड़ने दो इनको बन्धन में मत बांधो।।

स्वप्नभाव बीजों का संग्रहालय होता
लहलहाते अंकुरित भाव धरा पर जब
धरती स्वर्ग सम दिखने लग जाती तब
नव सपनों से पुष्पित पल्वित धरा होती।।

कोमल सपनो का अवरोहण न रोको
उड़ने दो  इनको  बन्धन में मत बांधो।।

नव प्रभात नव विहान चाहते हो नव स्वप्न पढ़ो
नव जवान नव भाव नया हिंदुस्तान  चाहते हो
तो संस्कृति संस्कार नव ज्ञान से हिदुस्तान बदलो
राष्ट्र भक्ति को सींमा परिधि में मत बांधो....।।

ये ह्रदय  ज्वार है जो कण-कण में बसताहै
तरुणाई  में देश भक्ति का उबाल आने दो 
नूतन में ढलना है गर तो बन्धन में मत बांधो
तरुणाई को बिछे आँगरों से पर चलकर साधो
 
 
इनके कोमल सपनो के कोई पंख न काटो
सपनो को साकार करो बन्धन में मत बांधो।।

              उर्मिला सिंह





Tuesday 15 June 2021

तृष्णा तूँ न गई मन से...

निडर तृष्णा ....
 बचपन से जवानी तक रहती है मन में....
 मन क्यों वसीभूत होता है तुझ में
 चेहरे की झुर्रियां बालों की सफेदियाँ
 अनदेखी कर तरुणाई आती है क्यों तुझमे
 जवानी,बुढ़ापे की सोच से दूर रहती
 व्याधियों से ग्रसित रहके भी तूँ जवां दिखती
 मृत्यु से भयभीत भी नही दिखती
 नित  फांसती है सभी को जाल में अपने
 नित नए रूप रंग ले के साथ आती
 मन को भरमाती झकझोरती
 अपने बाहुपाश में जकड़ लेती
 छटपटाता बेबस मन पर लाचार तुझ से।
  मानव की आखिरी  हिचकियों में भी
 क्या साथ रहती है तूँ मन के......
 हो सके तो सपने में  ही 
 आके बता जाना 
 राज अपनी निडरता का मन को मेरे।।
         उर्मिला सिंह
 
  
 

Thursday 10 June 2021

जिन्दगी का नया सबेरा....

जिन्दगी का नया सबेरा
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जिन्दगी का क्या भरोसा
 तूँ  स्वयम प्रकाश उसका
 मत निराश होना कभी मन
 जिन्दगी का होता हर दिन नया सबेरा।।

कुछ बाते अनसुनी सी
कुछ दास्ताँ अनकही सी
किस सोच में है पड़ा तूँ....
जिन्दगी का अहम हिस्सा है तूँ....।।

कदम क्यों रुक गए तेरे
पड़ाव अभी हैं  बहुतेरे
चलता रह चींटियों की चाल से
रूबरू कराएगा वही मंजिलो से....
जो  साथ साथ चल रहा सदा है तेरे।।

खामोशियों में भी एक संदेश होगा
अन्तर्मन को तुझे ही खंगालना होगा
रवि किरण उदयमान होंगी एक दिन...
वही दिन जिन्दगी, तेरा नया सबेरा होगा।।

               उर्मिला सिंह

Monday 7 June 2021

नज़र...

कतरा के चलते थे जो कभी अपनों की नजर से
तड़पते है मिलाने को नज़रे अब उनकी नजर से।।

बेवफाई की अदा में माहिर थे वो सदा से ही...
कसूर अपना था मिल गई नज़र उनकी नजर से।।

किस्मत की खता कहें या नज़रों काअंदाजे -बयां
लहरें भी पशेमाँ मिला के नजर उनकी नजर से।।

स्मृतियों की झीनी झोली से झांकते पलों की-
नजरें, मिल ही जाती है फिर उनकी नज़र से।

ये नज़रों का खेल है साहिब ज़माने से 
दिल की शमा भी बुझा देतें हैं उनकी नज़र से।।

             उर्मिला सिंह






Tuesday 1 June 2021

मित्र मंडली। .

मित्र मंडली इम्युनिटी बढ़ाने का स्रोत होताहैं
कभी तोला कभी मासा कभी सवासेर होता हैं।
बिन इनके जिन्दगी स्वाद विहीन रसहीन होती
सच पूछो तो जीने का मज़ा मित्र मंडली में होता है।
                
जीवन का ऑक्सीजन मित्रमण्डली होती है।

रिश्ता न हो जिससे खून का फिर भी प्रिय लगे
दु:ख सु:ख में जिसके कन्धे पे सर रख  चैन मिले
जिसके साथ चलने से थकाने स्वयम दूर होती हों
 रात में जगा कर जिसे परेशानियां सुनाने लगे।

वो दोस्त होते हैं जनाब उसी को दोस्ती कहतें हैं। 

दूर रहते पर दिल के तार एक दूसरे से जुड़े रहते
हँसी ठिठौली जिसके साथ बिंदास कर सकते
बेजान जिन्दगी में जो जान डाल देतें है.....
जिसे देखते अधर पर मुस्कान मन झूम उठता है।

उसे दोस्त कहते हैं ....हां उसी को दोस्त कहतें हैं

मिनटों में गमगीन चेहरे को जो पढ़ लेता है
पलकों के पीछे छुपे अश्को को जो देख लेता हैं
रूठने में भी जिसके प्यार झलकता हो......
शिकवे शिकायते भूल जो गले लग जाता हैं....
 वहीअटूट रिश्ता दोस्ती और दोस्त कहलाता हैं।।


                              .....उर्मिला सिंह