Sunday 22 May 2022

मन, कलम की गुफ़्तगू

मन,विचार का मिलन जब कलम से होता है तब कलम  पन्नों से कुछ गुफ़्तगू करने के लिए मचल पड़ती है.......

मन सोचा करता  है.....कभी कभी
    क्या पाया क्या खोया जग में
अपनो के आंखों में प्यार का गहरा सागर
    मन खोजा करता है कभी कभी।।
    
अधरों पर प्रीत की मीठी मुस्कान
    वाणी में मर्यादा और सम्मान
   अपनो का अपनापन अब कहाँ
 सब अतीत की बातें लगती हैं यहां।।
   
  मन सोचा करता है कभी कभी ।

जो दिल को नज़र आता था सदा.....
     वो खूबसूरतअनुभूति नही मिलती
      सरलता सादगी कोसों दूर हुई
भावों को समझे जो ऐसा मीत नही मिलता।।

  मन सोचा करता है कभी कभी।
  
चाहत के उपवन की भीनी भीनी सुगन्ध
     रिश्तों की पनपती शाखाएं
     और हसरतों के फूल घनेरे
   सब मुरझाए,मुरझाये से लगते हैं    
सुख की जाने क्यों अनुभूति नही होती।।

      मन सोचा करता है कभी कभी।   
  
जीवन दर्पण में भिन्न भिन्न चेहरे दिखते  
     अधूरी मुस्कान अधूरी बातें 
       अधूरे आँसूं अधुरे सपने
     अपनेपन की ढहती दीवारें
प्यार,स्नेह के मोती की माला बिखरी बिखरी
  

      मन सोचा करता है कभी कभी।

पाश्चात्य सभ्यता दोषी या संस्कार हैं दोषी
        नए जमाने की चकचौन्ध
        या कलयुग का आगमन 
     क्योंअनुराग सरिता जलविहीन हुई
धड़कन को क्यों  प्यार समझने में भूल हुई

      मन सोचा करता है कभी कभी
           

               उर्मिला सिंह

Sunday 15 May 2022

गुन गुनाओं ज़रा

गुनगुनाओ की  सहरा में भी बहांर  आजाये।
सुर  सजाओ  फिजाओं में भी जान आजाये।।

बड़ी बेरुखी से देखा है  जिन्दगी ने मुझे।
ज़रा शम्-ए उल्फ़त जलाओ तो चैन आजाये।।

बेज़ार अनमने से चल पड़े सफ़र पर।
हाथों में हाथ ले रोको मुझे तो करार आजाये।।

सुनी डगर सुनी निगाहें सुनसान हैं वादियाँ ।
निगाहे करम हो तेरी तो साँसों में जान आजाये।।

बिखरते ख़्वाबों की सिसकियां दूर तक गूँजती।
बिखरे ख्वाबों को सजा दो तो निखार आजाये।।

            उर्मिला सिंह
















Sunday 8 May 2022

मातृ दिवस पर वन्दन

मातृ दिवस पर ह्रदय से वन्दन.......
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मां और बच्चे का नाजुक स्नेहिल रिश्ता
निर्मल पावन निःस्वार्थ होता ये  रिश्ता।।

मां को यूं ही नही कहा गया भगवान
ममत्व,और दण्ड का रखती प्रावधान 
मर्यादा ,गीता ज्ञान समाहित उसमें
बिन कहे पढ़ती  लेती मनोभाव बच्चों के।

होता ऐसा निर्मल स्नेहिल रिश्ता मां का.....

मांन अपमान का ध्यान नही ....रखती
कभी काली कभी दुर्गा बन रक्षा करती
बच्चों की हर अवज्ञा का जहर  हैं पीती
आने वाली बाधाओं को अपने सर लेती

ऐसा प्यारा श्रद्धा मय होता रिश्ता मां का...

मां जीवन देती, शिक्षक,पथप्रदर्शक बनती
जीवन के हर पहलू को,अनुभव से समझाती
बच्चों की प्रगति के लिए चैत्यन्य सदा रहती
बच्चे माने,न माने आगाह सदा किया करती।।

निस्वार्थ  करुणामय  होता रिश्ता मां का....


मां के रक्त क्षीर से रचना होती बच्चों की
सब रिश्तों से ऊपर होता  रिश्ता मां का......

                 उर्मिला  सिंह



Wednesday 4 May 2022

घाव जिन्दगी के....

अनगिनत घाओं की गिनती करूँ कैसे
अश्को से भींगते मन को सुखाऊं कैसे
वादियों में आहों का शोर  छुपाऊं कैसे
हवाएं नफ़रतों का संदेश ले आ रहा 
ह्रदय को छलनी होने से बचाऊं कैसे।।

एक अनुरोध माँ का---बच्चों से

एक अनुरोध मां का- -बच्चों से....

आज प्रातः 'राजस्थान पत्रिका' देख रही थी तभी एक कहानी पर हमारी नज़र रुक सी गई नाम था
'ममता'पत्रिका हाथ में लिए मन कही दूर भटकने लगा ....यादों में माँ की तस्वीर घूमने लगी।
'माँ' आज हम सब के मध्य नही हैं।हम नानी , दादी बन गए उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच रहे हैं सुकून से जिंदगी चल रही है 
 पर मन की बात आज इस पन्ने पर लिख रही हूं
 बचपन से लेकर आज तक मां की प्रत्येक .....टोका टोकी  यादों में रची बसी है। बचपन में 'घर के बाहर देर तक खेलना ठीक नही है बेटा' ---बडी हुई छात्रावास से आने के बाद मां का लाउडस्पीकर चालू हो जाता था-' कितनी दुबली होरही है ,क्या खाना नही मिलता है वहां' वगैरह - वगैरह
 पर जब और बड़ी हुई तो कहना "बेटा थोडा थोडा हमारे काम में भी हाथ बटा दिया कर" 
 प्रत्येक बात को समझा कर कहतीं कि मुझसे होता नही है अब। माँ तो माँ होती है चाहे मेरी या दूसरे की उनकी पहचान ही ममता होती है। 'माँ 'बच्चों के  भविष्य की चिंताओं से लेकर  बच्चों की सेहत,आदते ,सभी की चिंताओं से व्यग्र रहती हैं.......ऐसी होती है मां की ममता।
       परन्तु आजकल कुछ अलग सा  व्यवहार माँ बच्चो के रिश्तों में जन्म लिया है सभी तो नही पर हाँ ज्यादातर आजकल के बच्चे अपने को बुद्धिमान तथा मां बाप को कमतर समझने में लगे हैं, बड़े होते ही अपने को ज्यादा समझदार समझने लगे हैं ,शायद उन्हें मालूम नही की जिन्दगी जीने की पढ़ाई में वे माँ से पीछे ही रहेंगे
किताबी ज्ञान और व्यवहारिक ज्ञान में अन्तर होता हैं।जो ज्ञान उन्होंने किताबों से पाया उससे कहीं ज्यादा ज्ञान उम्र ने मां को दिया है।पर नया जमाना नए लोग सभी परिभाषएँ बदल गईं हैं। 
कितनी खुशीयों परेशानियों के मध्य घिरे रहने के 
बाद भी आपको ( बच्चों) प्यार से पाला पोसा बडा कियाआप यानी(बच्चे)कहोगे की "उनका कर्तव्य था"तो आपका कर्तव्य भी उसके साथ होना चाहिए या नही या बस अधिकार ही चाहिए आपको?आत्ममंथन करियेगा जरा.......
परन्तु अन्त में  नए युग के बच्चों से एक बात अवश्य कहना चाहूंगी कि ---माता पिता अपने बच्चों के स्वर्णिम भविष्य की कामना करतें है
पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में पड़ कर जीवन बर्बाद न करें .....अभी आप जिस चकचौन्ध के भरम में जी रहे हो यह एक मृगमरीचिका की तरह है। उसके भरम जाल को तोड़ अपने संस्कारों की तरफ़ मुड़ कर देखिए जो आपके खून में रचा बसा है,अपने भविष्य के आप स्वयम जिम्मेदार हैं, आंखे खोलिए नई दुनिया में फूंक फूंक के कदम बढाइये,जीवन बनाने के लिए  संभावनाओं का भण्डार हैं तो दूसरी तरफ दुनियाँ की रंगीनियां।

 प्रिय बच्चों यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि किसे चुनना है। छणभर की चमक दमक या स्वर्णिम भविष्य  ......
 माँ के सपनो को साकार करिये पुत्र -पुत्री कोई मायने नही रखता ,हम आपसे कुछ नही चाहते बस आपका स्वर्णिम भविष्य तथा थोड़ा सा सम्मान ।
        आपके सुनहले भविष्य की कामना लिए 
                   एक माँ
                                  उर्मिला सिंह