Wednesday, 4 December 2024

आज वरदान दे मां....

     आज वरदान दे माँ आज दे वरदान मां

अपने स्नेहा-अंचल की छांव,आज दे वरदानमां 

       हृदय ज्वार अपरिमित आज है

       दिखती  नहीं ...कोई पतवार है

       अगम अनजान पथ राही अकेला....

        दुर्बल मन, शक्ति.... की आस है

   आज वरदान दे मां आज दे वरदान मां 

जीवनपथ निर्वाण बन जाय,आज दे वरदान मां।


        आधार एक तेरा हृदय में...

        अश्रु बूंदे करती मनुहार तुझसे

      विकल मन, क्रंदन करती सांसे

        मुक्तिद्वार का विश्वास दे.....

    आज वरदान दे मां,आज दे वरदान मां 

जर्जर मन पीड़ा काअवसान,आज दे वरदानमां।

          थके पैर ,आज गति प्रदान कर

          संसार के हर भार से मुक्त कर 

         हर सांस लिख रही विरह गीत अब,

         चरण की चाह,पूर्णता का वरदान दे मां 

     चिर सुख दुख के अन्त का आज उजास दे


     आज वरदान दे मां ,आज दे वरदान मां

 पावन चरणों की छांव दे आज वरदान दे मां ।।


                   उर्मिला सिंह



 

    


 

Saturday, 2 November 2024

जिन्दगी में क्या है?

   जिन्दगी में क्या है,कुछ ख्वाब कुछ उम्मीदें

   अगर इनसे खेल सको तो कुछ पल खेलो।।


    रिश्ते लिबास बन गए आज की दुनियां में

    हर चेहरे पर नकाब है देख सको तो देखो।।


    थक  गई अश्कों को छुपाते  छुपाते पलके

    छुपे ज़ख्मों के ज़खीरे देख सको तो देखो।।


  चलते चलते जिन्दगी की कब शाम हो जाए

दिए की लौ कैसे बुझती है देख सको तो देखो।।

  

 समझौता करके चले थे पथरीली राहें तुझसे

पैरों के हंसते छालों कोसमझ सको तो देखो।।

                 उर्मिला सिंह

 

 

   

    

     

Wednesday, 30 October 2024

आज कुछ ऐसे दीप जलाएं

     

चलो दीपावली ऐसी मनाएं 

तिमिर आच्छादित न हो....

अंतर्मन को पावन कर.....

 नेह की लौ तेज कर लें

जगमग जीवन हो  जाए।।.

चलो आज ऐसा दीपक जलाएं।।

तमस सत्य पर आवरित न हो

 प्रीत की बाती विश्वास का तेल हो

 किसी से क्षमा मांग ले .....

 किसी को क्षमा कर दें...

 होठों पर मुस्कानों की ....

 लौ तेज कर लें....

 चलो आज ऐसा दीपक जलाएं।।

 नेह से रीते घड़े में

 ज्योति पुंज जगमगाए

 धरती अम्बर भी मुस्कुराएं

  उत्साह की लहरे उठे...

  प्रत्येक मन में....

  खुशियों के पौध लहराए

चलो आज ऐसा दीपक जलाएं...।।

         🌷 उर्मिल 🌷

      🍁🍁🍁🍁🍁🍁

  

 

Thursday, 24 October 2024

जीवन का यथार्थ

जीवन का यथार्थ.....

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शाम का समय.....

ढलते सूरज की लालिमा....

आहिस्ता- आहिस्ता......

समुन्द्र के आगोश में.....

विलीन होने लगा......

देखते -देखते.....

अदृश्य होगया........

जिन्दगी भी कुछ ऐसी ही है.......

मृत्युं के आगोश में लुप्त होती ....

इंसान के वश में नही रोक पाना.....

लाचार ....बिचारा सा......इंसान

फिर भी गर्व की झाड़ियों में अटकता.....

अहम के मैले वस्त्रों  में

सत्य असत्य के झूले में झूलता....

जीवन की अनमोल घड़ियां गवांता......

जीवन की उलझनों में उलझा

सुलझाने की कोशिश में 

पाप पुण्य की परिधि की...

जंजीरों में जकड़ा

निरंतर प्रयत्नशील

अंत समय पछताता हाथ मलता.......

कर्मों का बोझ सर पर लिए अनन्त में.....

विलीन हो जाता......

जीवन का यथार्थ यही है.....शायद

जो हम समझ नही पाते हैं.......


  🌷उर्मिला सिंह



Sunday, 25 August 2024

कृष्ण जन्माष्टमी पर एक पुकार

सुनो हे कृष्ण मुरारी,व्यथा से पीड़ित नारी

 क्या इस युग में भी तुम आओगे?

प्रश्न हमारा तुमसे है ,हे राघव हे बनवारी

पुकार लगाया जब दीनो ने,दौड़े आए चक्रधारी

हमरी बारी क्यों देर भई कुछ तो बोलो गिरधारी।।

           उर्मिला सिंह

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Tuesday, 16 July 2024

मुजरिम,वकील जज हम्ही.....

मुजरिम वकील जज हम ही हैं
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वक्त के साथ साथ रिश्ते भी बदरंग हो जाते हैं 
उम्र के इस मोड पर जीने के मायने बदल जाते हैं।।

मन की कचहरी में मुजरिम वकील जज भी हमीं 
पर सत्य कहने का बता तूं हौसला कहा से लाऊं ।।

 किस यकीं पर उसे अपना कहूं.....
 रोशनी आंखों से छीन ली मेरी जिसने.....।

एक जलजला आया बचा न पास कुछ अब मेरे 
एक खुद्दारी ही रह गई है किस्मत से पास मेरे ।

ढूंढती हूं यकीं का वो गुलशन जो खो गया कहीं 
आस चुपके से अश्कों के कब्रगाह में सो गई कहीं।

              उर्मिला सिंह

Saturday, 29 June 2024

टेढ़ी मेढी जीवन राहों की मोड़.....

     उलझे सुलझे रिश्तों की डोर

    टेढ़ी मेढ़ी जीवन राहों की मोड़।

    सोच रहा विचारा व्याकुल मन 

कैसे सुलझाऊं,उलझी गांठों की डोर

    पाऊं कैसे दुस्तर मंजिल की छोर।।

                उर्मिला सिंह


 

Monday, 13 May 2024

हम स्वतंत्र हैं

       कुछ न कहिये जनाब  स्वतंत्र हैं हम........

           बोलने की आजादी है --तो

       नफ़रत फैलाने की स्वतन्त्रता---- भी

       लिखने पर कोई रोक टोक नही --तो

       शब्दों की गरिमा भी समाप्ति की.....

       देहरी पर सांसे गिनती दम तोड़ रही है....

       

       कुछ न कहिये जनाब  स्वतन्त्र हैं --हम....


        बच्चे हैं तो क्या हुआ, स्वतंत्र हैं --हम

        मां बाप का कहना क्यों माने.....

        अपनी मर्जी के मालिक हैं -- हम

        हमें पालना जिम्मेदारी है उनकी...

        आखिर बच्चे तो उनके ही हैं --हम।


        कुछ न कहिये ज़नाब स्वतन्त्र हैं --हम.....

        

       गुरु शिष्य का नाता पुस्तकों में होता है...

       आदर भाव तो बस सिक्कों से होता है।

       भावी समाज का निर्माण हमसे होता है...

   संसद से समाज तक  स्वतन्त्रता का परचम.

       लहराते  धर्म नीति की धज्जिया उडातें ...

     स्वतन्त्र  भारत के स्वतन्त्र नागरिक हैं हम

       

    कुछ न कहिये ज़नाब स्वतन्त्र हैं-- हम......!

      त्रस्त सभी इस स्वतन्त्रता से....

       पर आवाज उठाये कौन....!

      स्वतन्त्रता को सीमित करने की ....

      नकेल पहनाए कौन.....!!

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                            उर्मिला सिंह

      



      

    

   

        

        

                                  

        


           

Sunday, 31 March 2024

अन कही व्यथा......

अन कही व्यथा

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अनकही व्यथा दर्द का भंडार है

कहूं किससे दर्द में डूबा संसार है

मन  ठूंठ सा लगने लगा है अब.…

दरक्खत से पत्ते गिरने लगे हैं अब...


जिंदगी धूप में  छांव  ढूढती है 

हर पल ख्वाब के सुनहले सूत बुनती है 

खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाएंगे....

इसी एहसास के सहारे सांस चलती है।


ढूंढती रहती आंखें खोए हुवे लम्हों को

हकीकत के चश्में अपनों के चेहरों को

काश फ़साना  बनती न जिन्दगी यूं.....

मौत भी आसान लगती जिन्दगी को।।


सदाए देती हैं ये हवाएं आज भी....

उम्र के पन्नों पर लिखा प्यार का हर्फ आज भी

समझ न पाया ये जग मोहब्बत की बात को

उम्र मोहताज आखिरी सीढियां पार करने को।।


        उर्मिला सिंह

   

             







Saturday, 9 March 2024

बस यूं ही....जख्मों की अन कही कहानी....

ज़ख्म से जब जख्म की आंखे मिली

दिल के टुकड़े हुवे जख्म मुस्कुराए.....।


जख्म ने  हंस कर जख्म से पूछा.....

कहो कैसे गुजरे दिन अश्कों के समंदर में...।


अतीत के अंचल के साए में रात गुजरी

दिन की न पूछ यार मेरे की कैसे गुजरी।।




        उर्मिला सिंह

Tuesday, 27 February 2024

बस यूं ही......

  
तनहाइयां बेहतर हैं उस भीड़ से जनाब
 जहांअपनापन दम तोड़ता हो ओढ़े नकाब ।।

 मरहम चले लगाने तो गुनहगार हो गए हम
 तेरे यादों के पन्नों में ख़ाकसार हो गए हम ।।

जब तक कलम से भाओं की बरसात नही होती
ऐ जाने ज़िगर हमारी दिन और रात नही होती।।

  यादों की परी मुस्कुरा के इशारों से बुलाती हमे
  बेखुदी में चले जारहे,अब न रोके कोई हमें।।

   शब्दों के अलावा कुछ और नही मेरा....
शजर लगा के बियाबान में भटकता दिल मेरा।।

                   उर्मिला सिंह

Sunday, 18 February 2024

नारी...का दर्द

सात भांवरों की थकान उतारी न गई

दो घरों के होते हुवे नारी पराई ही रही।

जिन्दगी का सच ही शायद यही है.....

सभी कोअपनाने में  अपनी खबर ही न रही।।

पर ये बात किसी को समझाई न गई।।

               उर्मिला सिंह


   


Saturday, 10 February 2024

ख्वाब....मन और मैं......

कभी कभी मन ख़्वाबों के .....

वृक्ष लगाने को कहता......

सीचने सावारने को कहता....

दिमाग कहता ....

पगली !तेरे पौधों को सीचेंगा कौन

 किसे फुर्सत है .....

तेरे ख्वाबों को समझने का......

 तेरी आशाओं की .....

  कलिया चुनने का.....

 ये दुनिया वर्तमान को जीती है

  अतीत को भूल जाती है .....

   भविष्य के सपने बुनती है.....

   इस तरह जिन्दगी चलती है 

    जिन्दगी की इतनी सी कहानी है.....

  तुम  हो, तो दुनिया अपनी है

    नही तो एक भूली बिसरी कहानी है।

               उर्मिला सिंह


      


Friday, 2 February 2024

बस यूं ही....कलम चल पडी

      बस यूं ही....कलम चल पड़ी।

  जीवन की ऊबड़ खाबड़ पगडंडियों पर

 कभी धूप छांव कभी कंटकों पर चल पड़ी

     आंसू और मुस्कुराहटों सेउलझ पड़ी।।


        बस यूं ही ......कलम चल पड़ी।



        कभी सूनी दीवारों को देखती 

       यादों के चिराग जला कुछ ढूढती

           नज़र आते मकड़ी के जाले

      छिपकली के अंडे टूटी सी खटिया पड़ी।।


           बस यूं ही .....कलम चल पड़ी।



            कुछ नीम की सूखी दातून 

     तो कुछ पुराने दंत मंजन की पुड़िया पड़ी

          साबुन के कुछ टूटे टुकड़े

    गर्द धूल से भरी टूटी आलमारी रोती मिली।।

  

        बस यूं ही .....कलम चल पड़ी।


    मेज पर पडे कुछ पुराने कागज के पुलिंदे,

        बिखरे अपनी करुण दास्तां सुनाते 

           गुजरी रातों की कहानी सुनाते।

       कलम चलती रही शब्द तड़पते रहे

    रूह सुनाती रही दस्ता अपनी पड़ी पड़ी।।


          बस यूं ही.....कलम चल पड़ी।


       पूजा की कोठरी के धूप की सुगंध -

      से लगता सुवासित आज भी खंडहर

     मंत्रोचारण घंटे की आवाज गूंजती कानों में

        शंख ध्वनि प्रार्थना के भाव प्रचंड 

   कलम भी दर्द की कराह से हो गई खंड खंड

   कुछ न कह सकी बस चलते चलते रो पड़ी।।


          बस यूं ही.....कलम चल पड़ी।

                     उर्मिला सिंह



           

       

     

     

Thursday, 11 January 2024

भारत माँ का मुकुट हिमालय है 

तो हिंदी मस्तक की बिंदी ।

पहचान हमारी अस्मिता हमारी 

अभिमान हमारा है हिंदी ....

।हिंदी  भाषा के विकास का इतिहास भारत में आज का नहीं सदियों पुराना है । भारत की राज भाषा हिंदी,विश्व की भाषाओं में अपना एक महत्वपूर्ण  स्थान रखती है।

हिन्दी भाषा को जानने के लिए यह जानना परम आवश्यक है कि हिन्दी शब्द का उद्गम कैसे हुआ ।

हिंदी शब्द संस्कृत के सिन्धु शब्द से उत्पन्न हुआ है।

और सिंधु , सिंध नदी के लिए कहा गया है।

यही सिंध शब्द ईरानी भाषा मे पहले हिंदू, फिर हिंदी और बाद में हिन्द के नाम से प्रचलित हुआ और इस प्रकार हिंदी का नामकरण हुआ ।

हिंदी का उद्भव संस्कृत से हुआ जो सदियों पुरानी और अत्यंत समृद्ध भाषा है। और इसी संस्कृत भाषा से हमारे वेद ,पुराण,मन्त्र आदी प्राचीन काव्य और महाकाव्य लिखे गए हैं।

हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है जिसे विश्व मे सबसे अधिक वैज्ञानिक माना गया है ।

हिंदी साहित्य का क्षेत्र बहुत ही परिष्कृत और विस्तृत है।

साथ साथ  हिंदी व्यवहारिक भाषा है। बच्चा जन्म लेने के

पश्चात सर्व प्रथम माँ शब्द का ही उच्चारण करता है ।

हिंदी भाषा में प्रत्येक रिश्तों/सम्बन्धों के लिए अलग अलग शब्द होते हैं।जबकि अन्य किसी भाषा में ऐसा नहीं मिलता।

हिंदी भाषा की 5 उप भाषाएँ हैं तथा कई प्रकार की बोलियाँ प्रचलित हैं। आज कल इंटरनेट पर भी हिंदी भाषा का बाहुल्य है। हिन्दी ऐसी भाषा है जो हमें सभी से जोड़ने काप्रयत्न करती है । हिंदुस्तान के हर प्रदेश में हिंदी भाषा बोली जाती है भले ही टूटी फूटी क्यों न हो ।

विश्व में सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा हिन्दी ही है।ऐसा मेरा मानना है।

युग प्रवर्तक भारतेन्दु हरीश चंद्र जी ने हिन्दी साहित्य के माध्यम से नव जागरण का शंखनाद किया।

उन्होने लिखा:

 "निज भाषा उन्नति है,

 सब उन्नति का मूल।

 बिनु निज भाषा ज्ञान के,

 मिटे न हिय का शूल ।"

 हमारे देश का दुर्भाग्य रहा है कि हिन्दी भाषा का जो स्थान होना चाहिए वो आज तक हिंदी भाषा को प्राप्त न हो सका।

 अतएव आप सभी से अनुरोध है कि जितना हो सके हिंदी भाषा के विकास हेतु कार्य करें।

 किसी भी देश की मातृ भाषा उस देश का श्रृंगार/गौरव होता है अतएव उस श्रृंगार को निरंतर सजाते संवारते रहें।

 जितना भी हो सके हमलोगों को हिंदी के विकास के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।

 हिंदी भाषा हमारी पहचान है, हमारी आन -बान- शान है।

 धन्यवाद...

 जय हिंद   .

 जय भारत...।।

                     .....   उर्मिला सिंह 

Monday, 8 January 2024

जिन्दगी ....आसूं.....हंसी

जिन्दगी की परिभाषा....बस यूं ही

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नित नए अनुभवों से गुजरती है

नयन  नीर से सींचत करती है

हृदयांकुरों को प्लवित पुष्पित करती 

बस स्वयं से ही नही मिल पाती है।

ये कैसी दुनिया में सांसे लेती है  जिन्दगी 

तूं सभी की है पर तेरा कोई नही है।।


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आसूंओं की कहानी .....

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होठों पर हसीं आंखों में पानी....

बस इतनी सी है तेरी जिंदगानी

खुशियों से भरी निकलती हैं जब तूं....

 दुनिया सारी हंसती है.......

 गम के अंधेरे में छुपाती है

 बहलाती है,समझाती है स्वयं को...

 झरते हैं  तब ,ये जब सारी दुनिया सोती है.....

 तेरी कद्र करे कोई......

 ऐसी कोई हस्ती ,दुनिया में नही मिलती।।

 

  

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हंसी .....

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 तूं भी क्या कमाल करती है

 कितने गुणों को स्वयं में समेटे है

 कभी बच्चों से खिलखिलाती

 कभी फीकी मुस्कुराहट से 

दिल के हाल बताती.....

कभी दोस्तों के साथ ठहाको में मस्ती

कभी आंसुओं से आंचल भिगोती

 अनेक रूपों के लहरों में बहती

हर हाल तूं सभी का साथ देती

 जिन्दगी की कद्र तो सच कहूं....

बस एक तूं ही तो करती... बस तूं ही तो करती है।।

                🌷उर्मिला सिंह 🌷