Saturday, 31 December 2022

नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन हो

अभिनंदन है अभिनंदन
 नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन है
 ऐसा तुम्हारा आगमन हो
 प्रति पल प्रति क्षण सुन्दर हो
 
 नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन हो
 
  स्वर्णिम सपनों की झंकार
धवल नवल किरणों का श्रृंगार
आशाओं के पंख पसारे....
 मन खुशियों के पांव पखारे
 
 नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन हो

   नई  पहल  नया  सृजन हो
   दुर्गम राहें पर सरल जीवन हो
   उम्मीदों का उजले उजले सपने  ....
   जीवन शाखों पर ऊर्जा हो।।
   
   नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन हो।

     विस्मृत हो कटु स्मृतियां
     विगत जीवन के पन्नों से
     महके वसुधा मुस्कानों से
     हो समाप्त सभी कुरीतियां
     मानव जीवन के प्रांगण से।।
     
     नव वर्ष तुम्हारा अभीनन्दन  हो।

     नव रस नव संदेश का हो आगाज
     नव विश्वास,नव पथ नव परवाज
     नव उत्साह,नव जोश रग रग में बहे
      राष्ट्र धर्म ,सासों का लक्ष्य रहे....।
     .
      नव वर्ष तुम्हारा  अभिनंदन हो।
      
      शुभकामनाएं... ..शुभकामनाएं...
      सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं
      देश का गौरव गान हर दिल में रहे.....
      क्षमा,दया ,करुणा से भरा हरदिल रहे

        नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन हो.....

                     उर्मिला सिंह
     
    

Monday, 5 December 2022

ज्योति पुंज

सुनो ..ज्योति पुंज फिर प्रज्वलित होगा
 तम हारकर जीवन में विश्वास भरेगा...।।

    माना हिय में घनघोर अन्धेरा है
    सूरज पर बादल का पहरा है....
    पवन बहेगा बादल को छटना होगा
    प्राची से सूर्य रश्मियों को हँसना होगा।।

सुनो ..ज्योति पुंज फिर प्रज्वलित होगा....
 तम  हरकर जीवन में विश्वास भरेगा.....।।

   कटिले झाड़ राह तेरा रोकेंगे .....
   जख्मों को देकर ,दिल से खुश होंगे
   पर गुरुर टिका नही किसी का कभी....
   तेरे सत्य के आगे वह भी घुटने टेकेगा..।।
   
सुनो.. ज्योति पुंज फिर प्रज्वलित होगा...
तम हरकर जीवन में विश्वास भरेगा....।।

   सत्य सुचिता क्षमा ही सम्बल होगा
  दया धर्म करुणा राह तुझे दिखायेगा
   संस्कारों की कश्ती बंधी हुई तट पर.....
   आस्था,विश्वास,पथ तेरा अलंकृत करेगा...।।

     सुनो ज्योति पुंज फिर प्रज्वलित होगा....
      तम हरकर जीवन में विश्वास भरेगा.....।।

                   उर्मिला सिंह

Tuesday, 22 November 2022

मन पूछता है.....

कहाँ आसान होता है जीना...
अपनो के कडुवाहट के बाद 
जाने क्यों उनपर फिर भी प्यार आता है
 माना की प्रेम का धागा एक तरफ़ा है
 पर उनकी बेरुखी पर भी प्यार आता है।
 ये दिल की नादानियाँ ही कह लीजिए साहेब
 कि उनकी नफरतों का भी इंतजार रहता है।।


उम्र का तकाज़ा कहें या.....

उम्र का तकाज़ा कहें या कहें नादानियाँ
सोचती हूँ जमाने की हवा को क्या होगया
हिन्द की संस्कृति पश्चिमी सभ्यता की शिकार हुई
या मां भारती के संस्कारों में कोई कमी रह गई।
सनातन धर्म की सभ्यता भूल कर .....,
बर्बादी के रास्तों पर क्यों चल पड़े......।।
ये नए जमाने के  बेटें ,बेटियां......

मन पूछता है...

नारी हो तुम शक्ति पुंज कहलाती हो.......
 अताताइयों को क्यों सिरमौर  बनाती हो....
 प्रेम की भाषा जो समझ सका न कभी....
 उसके ऊपर क्यों व्यर्थ समय गवांती हो 
 मां की देहरी लांघना थी प्रथम भूल तुम्हारी 
 प्यार आह में बदला,क्यों नही आवाज उठाई थी
 नारी दुर्गा काली है, क्या खूब निभाया तुमने....
 पैतीस टुकड़ों में कट कर उस दानव के हाथ
                  जान गवाई.....

मन पूछता है.....

कानून ,अदालत,की धीमी चालें क्यों
.....
राजनीति का रंग चढ़ाती राजनीतिक पार्टियां...
पीड़ा पन्नो पर बिखरती मां बाप के आंसू बहते.....
जंगल जंगल शरीर के हिस्से मिलते......
न्याय की आशा धूमिल पड़ती......
"जनता  के द्वारा जनता के लिए,जनता का"
 सब हवा में उड़ते अम्बर तक अट्टहास  करते
 मन बार बार पूछता है देश के ठेकेदारों से....
  आखिर कब तक...... कब तक.....
  
                उर्मिला सिंह
  
 
       
 
 
 













Friday, 18 November 2022

कुछ भाव बस यूँ ही.....

    जिस नज़ाकत से लहरें
           पावों को छूती हैं
      यकीन  कैसे करूँ  कि ये
           कश्ती डुबोतीं हैं।।
      *********0*********
      जिसे दिल नेअपना समझ कर
                विश्वास किया।।
       उसीने इस दिल में हजारों 
                 नश्तर चुभाया।
       *********0*********
        स्वतंत्रता भी मर्यादित ही,
               अच्छी लगती है ।।
      लक्ष्मण रेखा के बाहर होते ही,
           सीता भी छली जाती हैं।।              
         *********0********               
       आधुनिकता के चमक दमक ,
                जीने की कला नही।।
        जुनुनें इश्क में बन के पागल,
                 जीवन गवाते नही।।
           *********0*********
       धर्म, संस्कार कुल की मर्यादा 
                तुम्ही से होती
       यूँ बगैर सोचे समझे किसी को
              अपना बनातें नही।।
        *********0*********
    
                  उर्मिला सिंह



                        
                   
                            
                  
                       
                 
 
           
     
                     


       

Monday, 14 November 2022

बचपन के दिन

बचपनकी यादें.....
बचपन के दिन सतरंगी-सतरंगी सपने होते थे!
पलको में बन्दी बन परियों  के  देश पहुँचते थे!!

चिन्ताओं से परे, बेफ़िक्री जीवन होता था,
तितली  को पकड़ते ,फूलो को छूते रहते थे!
बस्ते  कन्धे पर लादे स्कूल  को  चल  देते,
दौड़ लगाते हँसते गाते मस्त हमारे जीवन थे!!

बचपन के दिन सतरंगी-सतरंगी सपने होते थे!
उजली  राते  उजले  मन  उजले  दिन होते थे!!

      बचपन के खेलों में वो मस्ती होती थी,
      खो-खो  कबड्डी  लुका छुपी  होती थी !
      लड़ते - झगड़ते , गले  लग  जाते  थे,
      ऐसे दोस्त हमारे , ऐसी यारी होती थी!!

बचपन के दिन सतरंगी-सतरंगी सपने होते थे!
उजली  राते  उजले  दिन  उजले  मन होते थे!!

     बारिष की बूँदों को पकड़ने दौड़ा करते थे,
     छपक-छपक पानी मे हम भींगा  करते थे !
     गलियों में नाव चलाते ,डाटों की परवाह नही,
    बाबा,चाचा,दादा सबके ,पांव दबाया करते थे!

  बचपन के दिन सतरंगी-सतरंगी सपने होते थे!
  ‎पलकों  में  बंदी  बन परियों के देश पहुँचते थे !!

        दस पैसे का चूरन , चटकारे लेके खाते थे,
        गुड़िया - गुड्डा  बराती  बन ब्याह रचाते थे !
        कच्ची अमिया,हरी मटर की फलियाँ खाते,
        गन्ने   का   रस  पीते   और   पिलाते  थे!!

 बचपन के दिन सतरंगी-सतरंगी सपने होते थे !
 ‎पलकों  में  बंदी  बन परियों के देश पहुंचते थे !!
 
 स्मृति पटल पर ,दिख  जाती  जब बन्दी यादें,
 इन्द्रधनुष सी मन अम्बर पर छा जाती वो बाते!!
 ‎बचपन  के  दिन , याद  तेरी बहुत आती  है,
 ‎जोड़ तोड़ में उलझी जिन्दगी चलती जाती है!!
 ‎
 
 बचपन के दिन सतरंगी-सतरंगी सपने  होते थे !
 उजली  रातें  उजले  दिन उजले  मन  होते  थे !!
                                    
                                                 #उर्मिल

Friday, 11 November 2022

ग़ज़ल

मेरे  गीतों  को सुन  हौले  से  मुस्का देना
मन  की  उलझी  गाँठों को  सुलझा  देना!

विस्वासों  की  छाँवों  में  हो बसेरा अपना
छलके जो कभी अश्क  पलकों से उठा लेना!

जब  अनजानी राहें ,घनघोर  अन्धेरा हो
विश्वास, का  दीप इन नयनों में जला देना!

जख्मों के गुलाब बिक़तें हैं इस नगरी में...
मलहम की हो कोई दुकान बता देना!

कामना की शाखों पर  बैठें हैं मौन
अन्तर्मन की गूंज सुनाई दे, वो तरक़ीब बता देना!

                                  उर्मिला सिंह


Sunday, 11 September 2022

कलयुग

जीवन के पांच विकार ,काम,क्रोध,मोह,लोभ अरु अभिमान
कह गये वेद पुराण,पोथी गीता,संत सुजान।

फेसबुक,ट्विटर,यूट्यूब,वाट्सएप अरु इंस्ट्राग्राम
फिर क्यों बनादिए ये नए विकार बोलो हे करुना निधान।

इन शातिरों ने कर दिया जीना सबका दुष्वार
प्रातःउठ,लिए हाथ में घूमते जैसे हो ये भगवान।।

प्यार ,मोहब्बत,दोस्ती का है ये ठेकेदार
पथप्रदर्शक बन देता मोबाइल सबको ज्ञान।

इसके चंगुल से बच न पाए,ज्ञानी ध्यानी,वैरागी
यूट्यूब सुनाता गज़ल,भजनआरती के गान।। 

पति पत्नी और बच्चे वाट्स पर रहते मशगूल 
नोक झोंक होती पर नही छूटती इस से जान।

पत्राचार,मिलना जुलना बन्द वीडियो कॉलिंग में 
रहते मस्त
सोच रहा डाकिया पक्का कलयुग क्या यही है भगवान? 
                उर्मिला सिंह
                



                   


Monday, 18 July 2022

ॐ नमः शिवाय

आप सभी को सावन के सोमवार की हार्दिक शुभकामनाएँ........
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मुण्डमाल,बाघम्बर सोहे.
विषधर संग छटा निराली
मस्तक गंगाधर,शशिधर सोहे
हस्त कपाल श्मशान बिहारी।।

योगी,भोगी अरु ध्यानी  ज्ञानी
आशुतोष तुम औघड़ दानी
भस्म,धतूरा  मदार पुष्प भावे..
तुम हो भोलेशकंरअंतर्यामी।।

ॐ नमः शिवाय हिय बसे 
हे !गौरीशंकर,हे!उमापते
जय-जय-जय हे अभ्यंकर 
अब करुणा कर, मेरे परमेश्वर.....।।

         उर्मिला सिंह
    🌼🌼🌼🌼🌼

Wednesday, 13 July 2022

गुरुपूर्णिमा के शुभ अवसर पर.......

आस्था दीप जला सदगुरु वाक्यों का अनुकरण करो....
'तुलसी' की  पूजा करने  वालों, 'गंगा' के गीत लिखो

कटीली टहनियों पर भी खिलते हैं महकते फूल,
दुश्मन की हथेली पर भी प्रेम गीत लिखो।

इधर उधर की बातें छोड़ दिल की बात सुनो,
तम की बात नही चाँदनी के गीत लिखो।

दर्द पराया महसूस कर, इंसान कहाने वालों,
इन्सानियत की कलम से प्रेम के नवगीत लिखो।

नये जमाने की चकाचौन्ध मेंभूलेसस्कृतिअपनी,
दादी-अम्मा के रीत -रिवाजों के स्नेहसिक्तसँगीत लिखो।
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               उर्मिला सिंह

Saturday, 9 July 2022

बदलते समय.....कच्चे रिश्ते....

आज का समय ....जहां रिश्ते मिनटों में बनते बिगड़ते हैं।
        
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शादियों में हल्दी चन्दन सिंदूर तो है
पर रिश्तों के बन्धन का  पता नही
मिठाई,बुलावा ढोल तमाशे तो हैं.....
रिश्तों में प्यार संवेदना का पता नही।।

लिफाफे,उपहार पेकिंग की तारीफ़ तो है शुभकामनाओं की गहराई का पता नही
डब्बो के रंग  डिजाइन की होती तारीफें
महक ,स्वाद का क्या होता कोई पता नही..।।

उम्मीदों की लालटेन हाथों में तो है
ख्वाबों की रोशनी का कुछ पता नही
खुशियों की चाभी औरों के हाथों में...
किस्मत की मंजिल का कोई पता नही।।
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             उर्मिला सिंह




Tuesday, 28 June 2022

एक ख्वाईश....पागल मन की

एक ख्वाईश....पागल मन की।

बारिष -बादल
सावन -झूले
सुहानी हवा
माटी की सुगंध
फूलों की खुशबू
पूरी कायनात महक उठे।।

एक ख्वाइश -पागल मन की।।

इंद्रधनुषी -अम्बर
विश्वाशों का सफर
अनन्त की प्रार्थना
 बारिश की बूंदे
 अन्तर्मन के भाव
 विभोर तन मन
 नयन कोरों से
 छलकते अश्क
 एक ख्वाइश -पागल मन की।।
 
      कुछ शब्द 
 यादों के पिंजरे से
      तस्वीर बन 
     सामने आते
बीते वक्त  के अहसास
 सुरीले गीत के स्वर
  गूंजते वादियों में।।

एक ख्वाईश - पागल मन की।।
        *****0*****
          उर्मिला सिंह
  
 
    
     


Monday, 13 June 2022

सत्य अजेय है.... एकता ताकत

सत्य को सब्र चाहिए जिन्दगी में भला कबतक
पत्थर बाजी बिगड़ते बोल भला सहे कब तक
कौन झुका कौन जीता कौन हारा मतलब नही थप्पड़ खाकर गाल आगे करते रहोंगे कबतक।।

जिसकी मन वाणी तीर की तरह चले हमेशा 
शिवाजी की तलवार राणा प्रताप का भाला  ,
बताओ हिन्द वालो  रुके भला कैसे.......
सच्चाई बिन डरे भीड़ से  कह दिया जो हमने
कोई बताए ज़रा कौन सा जुर्म कर दिया हमने।।

शराफ़त का चोला पहन बैठे रहोगे कबतक
होश में आये नही अगर आज भी तुम्ही कहो
आजाद भगत सिंह असफाक के बलिदान का
क्या जबाब दोगे आने वाली पीढ़ियों को कहो
पत्थरों से संवेदना भीख,मांगते रहोगे कब तक।।
   कब तक...कबतक....कबतक
   
               उर्मिला सिंह











Sunday, 22 May 2022

मन, कलम की गुफ़्तगू

मन,विचार का मिलन जब कलम से होता है तब कलम  पन्नों से कुछ गुफ़्तगू करने के लिए मचल पड़ती है.......

मन सोचा करता  है.....कभी कभी
    क्या पाया क्या खोया जग में
अपनो के आंखों में प्यार का गहरा सागर
    मन खोजा करता है कभी कभी।।
    
अधरों पर प्रीत की मीठी मुस्कान
    वाणी में मर्यादा और सम्मान
   अपनो का अपनापन अब कहाँ
 सब अतीत की बातें लगती हैं यहां।।
   
  मन सोचा करता है कभी कभी ।

जो दिल को नज़र आता था सदा.....
     वो खूबसूरतअनुभूति नही मिलती
      सरलता सादगी कोसों दूर हुई
भावों को समझे जो ऐसा मीत नही मिलता।।

  मन सोचा करता है कभी कभी।
  
चाहत के उपवन की भीनी भीनी सुगन्ध
     रिश्तों की पनपती शाखाएं
     और हसरतों के फूल घनेरे
   सब मुरझाए,मुरझाये से लगते हैं    
सुख की जाने क्यों अनुभूति नही होती।।

      मन सोचा करता है कभी कभी।   
  
जीवन दर्पण में भिन्न भिन्न चेहरे दिखते  
     अधूरी मुस्कान अधूरी बातें 
       अधूरे आँसूं अधुरे सपने
     अपनेपन की ढहती दीवारें
प्यार,स्नेह के मोती की माला बिखरी बिखरी
  

      मन सोचा करता है कभी कभी।

पाश्चात्य सभ्यता दोषी या संस्कार हैं दोषी
        नए जमाने की चकचौन्ध
        या कलयुग का आगमन 
     क्योंअनुराग सरिता जलविहीन हुई
धड़कन को क्यों  प्यार समझने में भूल हुई

      मन सोचा करता है कभी कभी
           

               उर्मिला सिंह

Sunday, 15 May 2022

गुन गुनाओं ज़रा

गुनगुनाओ की  सहरा में भी बहांर  आजाये।
सुर  सजाओ  फिजाओं में भी जान आजाये।।

बड़ी बेरुखी से देखा है  जिन्दगी ने मुझे।
ज़रा शम्-ए उल्फ़त जलाओ तो चैन आजाये।।

बेज़ार अनमने से चल पड़े सफ़र पर।
हाथों में हाथ ले रोको मुझे तो करार आजाये।।

सुनी डगर सुनी निगाहें सुनसान हैं वादियाँ ।
निगाहे करम हो तेरी तो साँसों में जान आजाये।।

बिखरते ख़्वाबों की सिसकियां दूर तक गूँजती।
बिखरे ख्वाबों को सजा दो तो निखार आजाये।।

            उर्मिला सिंह
















Sunday, 8 May 2022

मातृ दिवस पर वन्दन

मातृ दिवस पर ह्रदय से वन्दन.......
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मां और बच्चे का नाजुक स्नेहिल रिश्ता
निर्मल पावन निःस्वार्थ होता ये  रिश्ता।।

मां को यूं ही नही कहा गया भगवान
ममत्व,और दण्ड का रखती प्रावधान 
मर्यादा ,गीता ज्ञान समाहित उसमें
बिन कहे पढ़ती  लेती मनोभाव बच्चों के।

होता ऐसा निर्मल स्नेहिल रिश्ता मां का.....

मांन अपमान का ध्यान नही ....रखती
कभी काली कभी दुर्गा बन रक्षा करती
बच्चों की हर अवज्ञा का जहर  हैं पीती
आने वाली बाधाओं को अपने सर लेती

ऐसा प्यारा श्रद्धा मय होता रिश्ता मां का...

मां जीवन देती, शिक्षक,पथप्रदर्शक बनती
जीवन के हर पहलू को,अनुभव से समझाती
बच्चों की प्रगति के लिए चैत्यन्य सदा रहती
बच्चे माने,न माने आगाह सदा किया करती।।

निस्वार्थ  करुणामय  होता रिश्ता मां का....


मां के रक्त क्षीर से रचना होती बच्चों की
सब रिश्तों से ऊपर होता  रिश्ता मां का......

                 उर्मिला  सिंह



Wednesday, 4 May 2022

घाव जिन्दगी के....

अनगिनत घाओं की गिनती करूँ कैसे
अश्को से भींगते मन को सुखाऊं कैसे
वादियों में आहों का शोर  छुपाऊं कैसे
हवाएं नफ़रतों का संदेश ले आ रहा 
ह्रदय को छलनी होने से बचाऊं कैसे।।

एक अनुरोध माँ का---बच्चों से

एक अनुरोध मां का- -बच्चों से....

आज प्रातः 'राजस्थान पत्रिका' देख रही थी तभी एक कहानी पर हमारी नज़र रुक सी गई नाम था
'ममता'पत्रिका हाथ में लिए मन कही दूर भटकने लगा ....यादों में माँ की तस्वीर घूमने लगी।
'माँ' आज हम सब के मध्य नही हैं।हम नानी , दादी बन गए उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच रहे हैं सुकून से जिंदगी चल रही है 
 पर मन की बात आज इस पन्ने पर लिख रही हूं
 बचपन से लेकर आज तक मां की प्रत्येक .....टोका टोकी  यादों में रची बसी है। बचपन में 'घर के बाहर देर तक खेलना ठीक नही है बेटा' ---बडी हुई छात्रावास से आने के बाद मां का लाउडस्पीकर चालू हो जाता था-' कितनी दुबली होरही है ,क्या खाना नही मिलता है वहां' वगैरह - वगैरह
 पर जब और बड़ी हुई तो कहना "बेटा थोडा थोडा हमारे काम में भी हाथ बटा दिया कर" 
 प्रत्येक बात को समझा कर कहतीं कि मुझसे होता नही है अब। माँ तो माँ होती है चाहे मेरी या दूसरे की उनकी पहचान ही ममता होती है। 'माँ 'बच्चों के  भविष्य की चिंताओं से लेकर  बच्चों की सेहत,आदते ,सभी की चिंताओं से व्यग्र रहती हैं.......ऐसी होती है मां की ममता।
       परन्तु आजकल कुछ अलग सा  व्यवहार माँ बच्चो के रिश्तों में जन्म लिया है सभी तो नही पर हाँ ज्यादातर आजकल के बच्चे अपने को बुद्धिमान तथा मां बाप को कमतर समझने में लगे हैं, बड़े होते ही अपने को ज्यादा समझदार समझने लगे हैं ,शायद उन्हें मालूम नही की जिन्दगी जीने की पढ़ाई में वे माँ से पीछे ही रहेंगे
किताबी ज्ञान और व्यवहारिक ज्ञान में अन्तर होता हैं।जो ज्ञान उन्होंने किताबों से पाया उससे कहीं ज्यादा ज्ञान उम्र ने मां को दिया है।पर नया जमाना नए लोग सभी परिभाषएँ बदल गईं हैं। 
कितनी खुशीयों परेशानियों के मध्य घिरे रहने के 
बाद भी आपको ( बच्चों) प्यार से पाला पोसा बडा कियाआप यानी(बच्चे)कहोगे की "उनका कर्तव्य था"तो आपका कर्तव्य भी उसके साथ होना चाहिए या नही या बस अधिकार ही चाहिए आपको?आत्ममंथन करियेगा जरा.......
परन्तु अन्त में  नए युग के बच्चों से एक बात अवश्य कहना चाहूंगी कि ---माता पिता अपने बच्चों के स्वर्णिम भविष्य की कामना करतें है
पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में पड़ कर जीवन बर्बाद न करें .....अभी आप जिस चकचौन्ध के भरम में जी रहे हो यह एक मृगमरीचिका की तरह है। उसके भरम जाल को तोड़ अपने संस्कारों की तरफ़ मुड़ कर देखिए जो आपके खून में रचा बसा है,अपने भविष्य के आप स्वयम जिम्मेदार हैं, आंखे खोलिए नई दुनिया में फूंक फूंक के कदम बढाइये,जीवन बनाने के लिए  संभावनाओं का भण्डार हैं तो दूसरी तरफ दुनियाँ की रंगीनियां।

 प्रिय बच्चों यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि किसे चुनना है। छणभर की चमक दमक या स्वर्णिम भविष्य  ......
 माँ के सपनो को साकार करिये पुत्र -पुत्री कोई मायने नही रखता ,हम आपसे कुछ नही चाहते बस आपका स्वर्णिम भविष्य तथा थोड़ा सा सम्मान ।
        आपके सुनहले भविष्य की कामना लिए 
                   एक माँ
                                  उर्मिला सिंह

Wednesday, 27 April 2022

जिन्दगी के कुछ उसूल...

बात- बात पर रूठा न कीजिये।
 झूठे वादों से तौबा किया कीजिये।।
 फ़ुरसत के लम्हों में आत्ममंथन करें।
जिन्दगी आसां बना जिया कीजिये।।

जितनी हो चादर उतना ही पांव फैलाइये 
ख्वाब दफ़न नही साकार किया कीजिये
चाँदनी रात या हो अमावस की रात....
हरपल के तज़ुर्बे से खुशियां मनाईये।। 

शब्द बोलने से पहले  सोचा तो कीजिये
किसी के दर्द का कारण न बना कीजिये
इन्सान अच्छे मिलतें हैं कहाँ इस जहां में
स्वयं को इंसान बना मिला कीजिये।।

हिलमिल  बैठ के प्रेम  गीत गाया कीजिये
मीठी मीठी बातों से मन बहलाया कीजिये  
हर दर्द की दवा दवाखानों में ही नही ........
कभी दोस्तों की महफ़िल में भी बैठा कीजिये।।

               उर्मिला सिंह










Wednesday, 13 April 2022

नारी मनोव्यथा.....

नारी मनोव्यथा 
किसने है समझी
आंसू गिरवी हैं यहां
मुस्कानों का ठौर नही
अगणित घाव चिन्ह 
उफ़ करने का अधिकार नही...
 ऐसे जग में नारी.......
 कैसे पाए सम्मान यहाँ।।
 
संस्कारों के बन्धन से 
बंधी है काया......
अगणित ख्वाबों का ,
बोझ उठाये......
महावर लगे 
कदमों से
नव ड्योढ़ी 
नव आंगन
में ज्योति जलाए
सुखमय जीवन के....
सब दस्तूर निभाये ।।

पर विधिना ने गढ़ी
कुछ और कहानी 
कर्तब्यओं की 
संगीनों पर....
अधिकार निष्प्राण 
 आदर्श खण्डहर हुए...।
 
  कभी कभी....
 स्मृतियों की लुकाछिपी
 नयन तरल कर जाती
 निमिष मात्र भी 
 हृद पट से अदृश्य
 नही हो पाती।।
  सुधियों की उर्मि
 जीवन तट को छू जाती
 अधरों पर  मृदुल.....
 हास की भूली बिसरी
 रेखा खिंच जाती।।
 
 लोगों की कहावत
 झूठी लगती
 "खाली हाथ आये 
 खलिहाथ जाएंगे"
 अंत समय मे तो
 कुछ कही अनकही
 व्यथा संग लिए जाएंगे।।
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  उर्मिला सिंह



 

Saturday, 2 April 2022

नवरात्री पर गीत

नवरात्रि के नव दिनों में माता अवतरित हो कर समस्त सृष्टि को अपने आशीर्वाद से सिंचित पल्वित करती है ,मां अदृश्य होती हैं पर भक्ति श्रद्धा उनके कोमल चरणों में होतो आसपास महसूस होती हैं।
  
मईया की बाजे पैजनियाँ
मईया ...मेरे घर में पधारी
कृपा की बरसे बदरिया
मईया मेरे घर में पधारी.....

रंगोली सजाऊँ  मईया चौक पुराउं
फूलन से सजाऊँ घर दुवरिया
मईया ...मेरे घर में पधारी....

पान सोपाड़ी ध्वजा नारियल
निबिया की  बहे  ठंढी बयरिया
मईया ....मेरे घर में पधारी

आसन सजाऊँ पांव पखारु 
महावर लगाऊं लाली लाली
मईया .....मेरे  घर में पधारी

लाल हरी चूड़ियां पहनाऊं
चुन्दड़ी उढाऊँ लहरेदार
मईया मेरे....घर में पधारी

                       
काजू किशमिश सेभोग बनाऊं
हलुवा पूड़ी से थाल सजाऊँ...
कंचन थार में दीप जलाऊं 
मईया ....मेरे घर में पधारी

आशीष देवें मईया भरि भरि अंचरा
अचल सोहाग जैसे गंगा क धरिया
चरणा देखी सुख पाऊं

 मईया..... मेरे घर मे पधारी

           उर्मिला सिंह
 

 

Thursday, 17 March 2022

होली के रंग

शब्द शब्द रंग भरे 
मस्ती छाई भावों में
उड़त गुलाल मन आंगन 
सखि फागुन आयो रे।।

 पलास पलास फागुन दहके 
 अधर रसीले प्रीत से छलके
 सत रँगी रंग रँगी चुनरिया 
 अंगिया रँगी लाल चटकारे 
 सखि फागुन आयों रे....
 सखि फागुन आयो रे...
 
गली गली भौरे मंडराये...
इत उत कलियां इतराये
लाल गुलाल कपोल लगे
शर्मीले नैना झुक झुक जाए रे...
सखि फागुन आयो रे......

महक रही बगिया सारी
बौराये आम की कोमल डाली
उड़े गुलाल लाल भये अम्बर
सतरंगी रंग प्रीत बन चहके
सखि !होली आई रे......
   💐💐💐💐
             उर्मिला सिंह
       









  
   
  

 








Monday, 28 February 2022

ॐ नमः शिवाय

महाशिवरात्रि के  पावन पर्व  पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
यूँ तो सभी शिवजी  का पूजन अर्चन करतें हैं किन्तु महाशिवरात्रि की अवधारणा विशिष्ट  है।
आध्यात्मिक ज्ञान के आलोक स्तम्भ है शिव बाबा। शिव समस्त शक्तियों के जनक हैं जो भी शक्ति है शिव की ही है। अतएव शिव - शिव का नाम जपन हो, शिव में ही लीन तनमन हो, यही मुक्ति का मार्ग है।
    
ॐ नमः शिवाय
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शिव शंकर भोले भंडारी
विनय सुनो मम त्रिपुरारी
देवों के देव  कहाते तुम
हे विश्वनाथ काशी वासी...

विनय सुनो महादेव कल्याणकारी...

हे ! जगत नियन्ता कैलाशपति
हे ! देवों के देव गिरिजाधिपति
हे ! तांडव कारी रुद्र रूप धारी
अखण्ड- अनन्त जटा गंग धारी...

बिनय सुनो मम त्रिपुरारी......

  व्याघ्र चर्म अंग विराजत
  भुजंग भूषण चन्द्रमुकुट सोहत
  भस्म अंग लगाय छवि मन मोहे
   कर  त्रिशूल  डमरू सोहे.....
    
   विनय सुनो  हे मंगलकारी.....
    
  असुर निहन्ता प्रभु प्रलयंकारी
  परम ब्रम्ह परम धाम परम गति
  गल रुद्राक्ष ,सर्प माल सुशोभित
  अति दयालु तुम जग के स्वामी...

   सुनो विनय हे करुणा कारी.....

  हे आदि अनादि अनन्त अखण्ड 
  वेद पुराण तुम्हरो गुण गावे..
   हे ! आशुतोष शरण मम लीजे
   दीन पुकार सुन उबार मोहि लीजे...

    सुनो बिनय हे ! प्रभु श्मशानी......

     चर अचर जड़ चेतन 
     सबही के नियंता तुम
     हे रामेश्वर ,हे विश्वेश्वर
     हे मार्कण्डेय हे अमरनाथ
    
     सुनो विनय हे शूलपाणी......
    
                    उर्मिला सिंह
    
    
 
 


  






 
 
  


Thursday, 24 February 2022

वक्त....

अपनी तहज़ीब को दिल में बसाए रक्खा है हमने।
नफऱत के काँटों से ख़ुद को बचाये रक्खा है हमने।।

नजरों में तेरे गैर सही मुझे इसका कुछ गिला नही।
तकदीर तेरे सामने सिर को झुका दिया है हमने।।

जीने वाले तो मर मर के जीते हैं इस जहां में
जो गुज़री है हम पर हँस के गुजारा है हमने।।

सूखी रेत हाथों से फिसल  जाती है दोस्तों
रिस्तो में नमी की कोशिस बारहा किया है हमने।।

वक्त पर गुरुर मत कर वक्त मौन है गूंगा नही
अपना पराया वक्त को बताते देखा है हमने।।

               उर्मिला सिंह




Wednesday, 2 February 2022

नव युग के विकास मेंहम बहुत कुछ भूल गये....

इस रंग बिरंगी दुनिया में 
क्या क्या बिसर गये हम

बिसर गये शब्द सभी
जिसको सुन बड़े हुए
बिसरे दुवार,आंगन,
और नरिया थपुवा सभी।

इस रंग विरंगी दुनिया में
क्या क्या बिसर गये हम

बिसर गये अनरसा खाझा
बिसरे पानी से भरी गगरी
बिसर गई दीवाली की दिया 
जिससे खेला करते हम कभी


इस रंग बिरंगी दुनियां में
क्या क्या बिसर गये हम।

बिसर गये साझ भिनसार
बिसर गया तुलसी का चौरा
बिसरी दूधिया पटरी और पचारा
दूना तीस तियां पेंतालिश का पहाडा।।

इस रंग बिरंगी दुनिया में
क्या क्या बिसर गये हम

 कबड्डी,गुल्ली डंडा स्वप्न हुवे
गुड्डा गुड़िया की शादी भूल गए
 बाग बगईचा कोइलिया भूले
भुट्टा के खेत का मचान भूल गए।।

   इस रंग बिरंगी दुनिया में
    क्या क्या बिसर गये हम

लरिकैईयाँ की धमाचौकड़ी भूले
भूले चरखे वाली नानी
लालटेन ढिबरी भूलगये
भूलगये हम रात सुहानी..।।

इस रंग विरंगी दुनियां में
क्या क्या बिसर गये हम

कड़ाहे के गुड़ का चिंगा भूले
भूल गए कुएं का ठंढा पानी
खटिया मचिया मिट्टी का चूल्हा भूले
भूल गए संस्कारों की बातें सारी।।

इस रंग विरंगी दुनियां में
क्या क्या बिसर गये हम

भूल गए इनारे का पानी
मचिया खटिया भूले गये
करौनी गट्टा भूल गये
बिसरी चीनी की घोड़ा हाथी।।

इस रंग विरंगी दुनियां में
क्या क्या बिसर गये हम

कुछ शब्द  हेराय गया 
कुछ  हमने हेरवाय दिया
इस रंग बिरंगी दुनिया ने
पहचान छीन सभ्य बना दिया।।

इसरंग बिरंगा दुनिया में 
हम क्या से क्या होगये।

क्या बतलायें क्या क्या शब्द भूल गये
माई बाबू भौजी,नईहर शब्द भूल गये
पापा मम्मी,अंकल आंटी में रिश्ते सिमटगये
जीन्स स्कर्ट पहन जेन्टल मेन अब बनगये।।

इस रंग बिरंगी दुनियां में
हम क्या से क्या होगये।।

    उर्मिला सिंह



Wednesday, 26 January 2022

गणतंत्र दिवस पर मन के कुछ भाव....

    सोये जनमानस अब तो जागो,
लहराये तिरंगा सबसे ऊँचा, लक्ष्य यहीं बनाओ।

विकास राष्ट्रवाद का हो भाव, यहीअपनाओ,
 लहराए तिरंगा ऊंचा संकल्प यही दुहहराओ।
समय कुचक्र रच रहा पावों के काँटे मत देखो,
चुनौतियों को स्वीकारो आगे बढ़ हुंकार भरो।।

     सोये जनमानस अब तो जागो,
   राष्ट्र कार्य में आगे बढ़ हाथ बटाओ।।

राष्ट्र भक्त हो तो सत्य धर्म का साथ निभाओ,
लक्ष्य विहीन राजनीति को आईना दिखालाओ।
मगरूर नेताओं को  सबक सिखाना होगा..।
दुर्गम पथ,जान हथेली पर धर,देश धर्मनिभाओ 

    सोये जन मानस अब तो जगो,
शहीदों की कुर्बानी का कर्ज चुकाओ।।
      
 राष्ट्रवाद का नारा नगर,शहर,गांवों में लहराओ..
भ्रष्टाचारियों, देशद्रोहियों को संसद से दूर करो..
नफ़रत,असत्य के पुजारी राष्ट्र वादी होंगे कैसे..
किंचित मात्र इन पर रहमदृष्टि मत दिखलाओ। 

     सोये जनमानस अब तो जागो,
नवयुग शंखध्वनि जगा रही,अब तो जागो ।
                          
पुनीत पावनी धरा शस्य श्यामली रहे सदा,
असंख्य लाल माँ भारती के बलिदान हुये यहां। मशाल उनके शौर्य के बुझा न पाए दुश्मन कभी,
दहाड़ शहीदों की अपनी सांसों में तुम बसाओ। 
         
      सोये जनमानस अब तो जागो ,
 तिरंगा धरती सेअम्बर तक लहराओ।
                 उर्मिला सिंह